Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 432
________________ यह उसका कर्म है। वह समझ लेगा इसके बारे में और वह दुख भोगेगा ही। इससे तुम्हें जरा भी लेना-देना नहीं। तुम इसके बारे में कुछ मत सोचना इस पर कोई ध्यान मत देना। यदि कोई वेश्या है और वह अपना शरीर बेच रही है, तो वह उसकी समस्या है। तुम अपने भीतर कोई निंदा मत बना लेना; अन्यथा तुम आकर्षित हो जाओगे उसकी ओर। ऐसा हुआ, और यह बहत पुरानी कथा है कि एक साध और एक वेश्या एक साथ रहते थे। वे पड़ोसी थे, और फिर वे मर गये। वह साधु बहुत प्रसिद्ध था। मृत्यु आ पहुंची और साधु को नरक की ओर ले चलने का प्रयत्न करने लगी। वे दोनों एक ही दिन मरे थे। वह वेश्या भी मर गयी थी। साधु तो चकित था क्योंकि वेश्या को स्वर्ग के मार्ग पर ले जाया गया था। अत: वह कहने लगा, 'यह क्या है? कुछ भूल हो गयी मालूम पड़ती है। असल में मुझे ले जाया जाना चाहिए था स्वर्ग की ओर। और यह तो एक वेश्या है।' 'श्रीमान यह बात हम जानते हैं, उससे ऐसा कह दिया गया। लेकिन अब, अगर आप चाहें तो इसे हम आपको समझा सकते है। कोई भूल नहीं हुई। यही है आज्ञा, कि वेश्या को स्वर्ग ही लाना है और साधु को फेंक देना है नरक में।' वह साधु कहने लगा, 'लेकिन क्यों?' वह वेश्या भी इस पर विश्वास न कर सकती थी। वह बोली, 'कोई न कोई भूल जरूर हुई है। मुझे स्वर्ग भेजना है? और वे एक साधु हैं, एक महान साधु। हम उन्हें पूजते रहे हैं। उन्हें ले जाओ स्वर्ग।' मृत्यु बोली, 'नहीं, यह संभव नहीं, क्योंकि वह मात्र सतह पर ही साधु था। वह निरंतर सोच रहा था तुम्हारे बारे में। जब तुम रात्रि में गाना गाती, वह आता और तुम्हें सुनता। वह बिलकुल अहाते के निकट आ खड़ा होता और तुम्हें सुनता। लाखों बार उसने चाहा होगा जाकर तुम्हें देखना, तुम्हें प्यार करना, लाखों बार उसने तुम्हारा सपना देखा। वह लगातार तुम्हारे बारे में सोच रहा था। उसके होठों पर तो नाम रहता भगवान का; उसके हृदय में छबि होती थी तुम्हारी।' और यही बात ठीक दूसरे छोर से वेश्या के साथ थी। वह अपना शरीर बेच रही होती, तो भी हमेशा सोच रही होती कि वह इस साधु के समान जीवन पाना चाहेगी, जो कि मंदिर में रहता है। कितना शुद्ध है वह। वह यही सोचती। वह साधु का सपना देखती, शुचिता का, संतत्व का, उस अच्छाई कार सपना देखती जिसे कि वह चूक रही थी। और जब ग्राहक जा चुके होते, तब वह भगवान से प्रार्थना करती,!!अगली बार फिर मत बनाना मुझे वेश्या। मुझे पुजारी बना देना; मुझे ध्यानी बना देना। मैं मंदिर में समर्पित हो सेवा करना चाहूंगी।' आर बहुत बार उसनमा बार उसने मंदिर जाने की बात सोची, लेकिन उसे लगा कि वह पाप में इतनी फंसी हई है कि मंदिर में प्रवेश करना ठीक नहीं।

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