Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 421
________________ जब तुम मित्रता अनुभव करते हो उसके साथ जो उदास होता है, निराश, अप्रसन्न, दुखी होता है तो तुम स्वयं के लिए दुख निर्मित कर लेते हो। पतंजलि का यह विचार बहुत अधार्मिक मालूम पड़ता है। ऐसा नहीं है, क्योंकि जब तुम उनका संपूर्ण दृष्टिकोण समझोगे तो तुम उसे अनुभव करोगे जो अर्थ वे देते हैं। वे अत्यंत वैज्ञानिक हैं। वे कोई भावुक व्यक्ति नहीं हैं। और भावुकता तुम्हारी मदद न करेगी। तुम्हें बहुत साफ, स्पष्ट होना है '.. .दुखी के प्रति करुणा....। मित्रता नहीं, करुणा। करुणा एक भिन्न गुणवत्ता है और मित्रता एक अलग ही गुणवत्ता है। मैत्रीपूर्ण होने का अर्थ है, तुम एक स्थिति निर्मित कर रहे हो जिसमें कि तुम वही होना चाहोगे जैसे दूसरा व्यक्ति है। तुम उसी भांति होना चाहोगे जैसा तुम्हारा मित्र है। करुणा का अर्थ है कि कोई अपनी अवस्था से गिर गया है। तुम उसकी मदद करना चाहते हो, किंतु उसकी भांति नहीं होना चाहोगे। तुम उसे हाथ दे देना चाहोगे, तुम उसका ध्यान रखना चाहोगे, उसे प्रसन्न करना चाहोगे लेकिन तुम उस भांति नहीं होना चाहोगे क्योंकि वह कोई सहायता न होगी। कोई रो रहा है और बिलख रहा है, और तुम निकट बैठ जाते हो और तुम रोना-चीखना शुरू कर देते हो-क्या तुम उसकी मदद कर रहे हो? किस ढंग की है यह मदद? यदि कोई दुखी है और तुम भी दुखी हो जाओ, तो क्या तुम उसकी मदद कर रहे हो? तुम तो उसका दुख दुगुना कर रहे होओगे। वह अकेला ही दुखी था; अब दो व्यक्ति हो गये हैं जो दुखी है। बल्कि दुखी के प्रति सहानुभूति प्रकट करने से तो तुम फिर एक चालाकी चल रहे होते हो। तुम दुखी के प्रति सहानुभूति दिखाते हो, किंतु ध्यान रहे, गहरे में सहानुभूति कोई करुणा नहीं है, सहानुभूति मैत्रीपूर्ण बात है। जब तुम सहानुभूति और मित्रता दिखाते हो निराश,उदास, दुखी व्यक्ति के प्रति, तो गहरे तल पर तुम प्रसन्नता अनुभव कर रहे होते हो। वहां हमेशा प्रसन्नता की अंतर्धारा होती है। उसे वहां होना ही है क्योंकि यह एक सीधा-साफ गणित है-जब कोई व्यक्ति प्रसन्न होता है, तुम दुखी अनुभव करते हो; अत: जब कोई दुखी होता है, गहरे तल पर तुम बहुत प्रसन्न अनुभव करते हो। लेकिन तुम यह बात दर्शाते नहीं। यदि तुम गहराई से ध्यानपूर्वक देखो, यदि सहानुभूति प्रकट करते हो तो ऐसा पाया जायेगा कि तुम्हारी सहानुभूति में भी प्रसन्नता की सूक्ष्म धारा है। तुम अच्छा अनुभव करते हो कि तुम सहानुभूति दिखाने की स्थिति में हो। वस्तुत: तुम प्रसन्न अनुभव करते हो कि यह तुम नहीं हो जो अप्रसन्न है। तुम तो ज्यादा ऊंचे हो, बेहतर हो। लोग हमेशा अच्छा अनुभव करते हैं जब वे दूसरों के प्रति सहानुभूति दिखाते हैं। वे हमेशा इस बात से खुश हो जाते हैं। गहरे तौर पर वे अनुभव करते हैं कि वे बहुत दुखी नहीं हैं, कृपा है परमात्मा की। जब कोई मरता है, तो तुरंत तुममें एक अंत-प्रवाह उमड़ आता है, जो कहता है कि कृपा है परमात्मा की कि तुम अभी जिंदा हो। और तुम सहानुभूति प्रकट कर सकते हो। इसमें कोई कीमत नहीं लगती। सहानुभूति दिखाने में तुम्हारा कुछ खर्च नहीं होता। लेकिन करुणा एक अलग बात है।

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