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एक बार खुल जाते हो, तो तुम दूसरों को खोल सकते हो। यह एक संक्रामकता है। और सुंदर संक्रामकता है; संक्रामकता संपूर्ण स्वास्थ्य की, किसी रोग की नहीं। समग्रता की संक्रामकता है, पवित्रता की संक्रामकता, एक संक्रामकता पावनता की।
आज इतना ही।
प्रवचन 19 - समुचित मनोवृतियों का संवर्धन
दिनांक 9 जनवरी, 1975;
श्री रजनीश आश्रम, पूना।
योगसूत्र:
मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां
भावनातश्चित्तप्रसादनम्।। 3311
आनंदित व्यक्ति के प्रति मैत्री, दुखी व्यक्ति के प्रति करुणा, पुण्यवान के प्रति मुदिता तथा पापी के प्रति उपेक्षा-इन भावनाओं का संवर्धन करने से मन शांत हो जाता है।
प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्थ।। 3411
बारी-बारी से श्वास बाहर छोडने और रोकने से भी मन शांत होता है।
विषयवती वा प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनस: स्थितिनिबधनी।। 3511