Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 391
________________ क्यों तुम आरंभ करते और रुक जाते हो? लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि उन्होंने एक वर्ष तक ध्यान किया, फिर उन्होंने बंद कर दिया। और मैं पूछता हूं उनसे, 'कैसा अनुभव कर रहे थे तुम? 'हम बहुत-बहुत अच्छा अनुभव कर रहे थे। मैं पूछता हूं उनसे, 'तो फिर भी तुमने क्यों बंद कर दिया? कोई बंद नहीं करता जब कोई बहुत अच्छा अनुभव कर रहा हो तो! 'वे कहते हैं, 'हम बहुत खुश थे; फिर हमने बंद कर दिया।' मैं उनसे कहता हूं 'यह असंभव है। यदि तुम प्रसन्न थे, तो कैसे कर सकते हो तुम बंद? 'तब वे कह देते हैं, 'एकदम प्रसन्न तो नहीं।' तो वे मुश्किल में पड़े होते है। वे दिखावा भी कर लेते हैं कि वे प्रसन्न हैं। यदि तुम किसी निश्रित बात में प्रसन्न होते हो, तो तुम उसे बनाये रहते हो। तुम केवल तभी बंद करते हो जब वह उंबाऊ बात होती है, एक ऊब, एक अप्रसन्नता होती है। पतंजलि कहते हैं, ओम् के द्वारा तुम पहला स्वाद पाओगे, संपूर्ण समष्टि में समा जाने का। वही स्वाद तुम्हारी प्रसन्नता बन जायेगा और अस्थिरता चली जायेगी। इसीलिए वे कहते हैं कि ओम् का जप करने से, उसका साक्षी बनने से सारी बाधाएं गिर जाती हैं। दुख निराशा कंपकंपी और अनियमित श्वसन विक्षेपयुक्त मन के लक्षण हैं। ये होते हैं लक्षण। दुख का अर्थ ही होता है कि तुम सदा तनाव से भरे होते हो, चिंताग्रस्त होते हो, सदा बंटे-बिखरे होते हो। हमेशा चिंतित मन लिये, हमेशा उदास, निराश-भाव में होते हो। तब सूक्ष्म कंपकंपी होती है देह-ऊर्जा में, क्योकि जब देह-ऊर्जा एक वर्तुल में नहीं चल रही होती; तुममें होता है सूक्ष्म कंपन, कंपकंपी, और अनियमित श्वसन। तब तुम्हारा श्वसन लयबद्ध नहीं हो सकता। यह एक अनियमित श्वासोच्छ्वास होता ये लक्षण है विक्षेपयुक्त मन के। और इसके विपरीत लक्षण होते है उस मन के जो केन्द्रीभूत होता है। ओम् का जप तुम्हें केन्द्रित बनायेगा। तुम्हारा श्वसन लयबद्ध हो जायेगा। तुम्हारी शारीरिक कपकंपाहटें तिरोहित हो जायेंगी, तुम घबड़ाये हुए नहीं रहोगे। उदासी का स्थान एक प्रसन्न अनुभूति ले लेगी। एक प्रसन्नता। तुम्हारे चेहरे पर एक सुकोमल आनंदमयता होगी, बिना किसी कारण के ही। तुम बस प्रसन्न होते हो। तुम्हारे होने मात्र से तुम प्रसन्न होते हो; मात्र सांस लेते हुए ही तुम प्रसन्न होते हो। तुम कुछ बहुत ज्यादा की मांग नहीं करते। तब संताप, मनोव्यथा की जगह आनंद होगा। इन बाधाओं को दूर करने के लिए एक तत्व पर ध्यान करना।

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