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सारी बाधाएं गिर जायेंगी और सारी अड़चनें तिरोहित हो जायेंगी। अत: यह प्रक्रिया औसत रूप से लगभग नौ महीने ले सकती है यदि तुम तुम्हारी समग्र ऊर्जा इसमें डाल देते हो तो।
तीसरा प्रश्न:
ओम् की साधना करते हुए इसे मंत्र की भांति दोहराना बेहतर है या अंतर्नाद की भांति इसे सुनने का प्रयत्न करना बेहतर है?
बिलकुल अभी तो तम इसे अंतर्नाद की भांति नहीं सुन सकते। अंतर्नाद है वहां, लेकिन
बहुत मौन है, बहुत सूक्ष्म,और तुम्हारे पास वह कान नहीं है इसे सुनने के लिए। कान को विकसित करना होता है। जब शरीर आपूरित होता है, और मन आपूरित होता है, केवल तभी तुम्हारे पास होगा वह कान-अर्थात तीसरा कान। तब तुम सुन सकते हो उस नाद को जो सदा वहां होता है।
यह सर्वव्यापी नाद है। यह अंदर और बाहर है। अपना कान वृक्ष से लगा दो और यह वहां होता है; अपना कान चट्टान से लगा दो और यह वहां होता है। लेकिन पहले तुम्हारे शरीर और मन का अतिक्रमण हो जाना चाहिए और तुम्हें अधिकाधिक ऊर्जा प्राप्त कर लेनी चाहिए। सूक्ष्म को सुन पाने के लिए विराट ऊर्जा की आवश्यकता पड़ेगी।
पहले चरण के साथ कामवासना तिरोहित हो जाती है, दूसरे चरण के साथ प्रेम तिरोहित हो जाता है और तीसरे चरण के साथ हर वह चीज जिसे तुम जानते हो, तिरोहित हो जाती है। यह ऐसा होता है जैसे कि तुम बचे ही नहीं, मृत हो, जा चुके हो,समाप्त हो गये हो। यह एक मृत्यु की घटना होती है। ऐसा घटता है यदि तुम पलायन नहीं
करो और घबड़ाओ नहीं। क्योंकि तुममें हर प्रवृत्ति उठेगी पलायन करने की। क्योंकि यह अगाध शून्य की भांति लगता है,और तुम इसमें गिर रहे हो। और वह अथाह-अतल है जिसका कोई अंत नहीं जान पड़ता। तुम अतल-अथाह में पड़ते हुए एक पंख की भांति बन जाते हो-गिर रहे हो और गिर रहे हो, और इसका कोई अंत आता नहीं जान पड़ता।
तुम घबड़ा जाओगे। तुम इससे भाग जाना चाहोगे। यदि तुम इससे भागते हो, तो सारा प्रयास ही व्यर्थ हो जायेगा। और यह भागना ऐसा होगा कि तुम फिर ओम् के मंत्र का जप करने लगोगे। तुम वहां से भागने लगोगे तो पहली बात जो तुम करोगे वह यही होगी-ओम् का जप। क्योंकि यदि तुम जप करते हो तो तुम मन में ही लौट आते हो। यदि तुम जोर से जप करते हो तुम शरीर में लौट आते हो।