Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 400
________________ देह - ऊर्जा सहित तो यह कहा जाता है कि इस अवस्था में कोई नकारात्मक बात नहीं कही जानी चाहिए-अनजाने में भी नहीं कोई नकारात्यक बात नहीं कहनी चाहिए। तुम हैरान होओगे, पर फिर भी तुमसे कह देना उचित होगा। हम इस घर के पिछवाड़े एक छत बना रहे थे, और वह गिर पड़ी। वह गिर पडी तुममें से बहुतों के कारण । तुम ध्यान में जबरदस्त प्रयास कर रहे हो और कम से कम बीस आदमी ऐसे थे जो सोच रहे थे कि वह गिर जायेगी। उन्होंने मदद की। उसे गिरने में मदद की उन्होंने कम से कम बीस व्यक्ति लगातार सोच रहे थे कि यह गिर जायेगी। जब वे थे वहां, वे उसकी ओर देखते और वे सोचते कि यह गिर जायेगी, क्योंकि उसका आकार ऐसा था कि उनके हिसाब से यह बात असंभव थी कि वह बनी रह सकती । वह गिर गयी और जब वह गिरी, उन्होंने सोचा, 'निस्संदेह, हम सही थे। यह है दुष्चक्र। तुम्हीं हो कारण और तुम सोचते हो तुम सही थे और तुम सब बहुत प्रयास कर रहे हो ध्यान में। जो कुछ तुम सोचते हो, घट सकता है जब तुम ध्यान कर रहे हो तो नकारात्मक विचार पर कभी मत विचारो। उसका सच हो जाना संभव है क्योंकि तुम्हें कुछ शक्ति प्राप्त है। और फिर मुझे कुछ लेना-देना नहीं कि छत गिर गयी। इसके गिरने के कारण तुममें से बहुतों ने शक्ति की एक निश्चित मात्रा खो दी है, और इसी बात का ज्यादा ध्यान है मुझे तुम्हारी शीतः प्रयुक्त हुए बिना कुछ नहीं घटता । जो कह रहे थे कि यह गिर जायेगी उन्हीं के कारण वह छत गिर गयी और वे स्वयं देख सकते हैं। कुछ दिनों तक वे बहुत अशक्त, उदास, निराश रहे। उन्होंने अपनी शक्ति खो दी। शायद वे सोच रहे होंगे कि वे उदास थे क्योंकि छत गिर गयी है, पर नहीं। वे उदास थे क्योंकि उन्होंने शक्ति की एक निश्चित मात्रा खो दी और जीवन है एक ऊर्जात्मक घटना । जब तुम ध्यान नहीं करते, तो कोई ज्यादा मुश्किल नहीं होती। तुम जो चाहो कह सकते हो क्योंकि तुम अशक्त होते हो। पर जब तुम ध्यान करते हो, तुम्हें जागरूक होना चाहिए उस एक -एक शब्द के प्रति जो तुम कहते हो, क्योंकि हर एक शब्द कुछ निर्मित कर सकता है तुम्हारे चारों ओर । पहला चरण है सारे शरीर को आपूरित करने का जिससे कि सारा शरीर एक नाद-शक्ति बन जाता है। जब तुम संतुष्ट अनुभव करते हो, तब दूसरा चरण बढ़ाना और कभी प्रयोग मत करना इस शक्ति का क्योंकि यह शक्ति एकत्रित करनी होती है और प्रयुक्त करनी होती है दूसरे चरण के लिए। दूसरा चरण है अपने मुंह को बंद करो और दोहराओ और मन ही मन जप करो ओम् कापहले शारीरिक रूप से और फिर मानसिक रूप से। अब शरीर का उपयोग बिलकुल नहीं होना चाहिए । गला, जीभ, होंठ, हर चीज बंद रहनी चाहिए। सारा शरीर बंद होना चाहिए और जप होना चाहिए केवल मन में ही। लेकिन जितना संभव हो उतना जोर से ही। वही प्रबलता रहे जैसी तुम शरीर के

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