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ऐसा घटता है ड्राइवरों के साथ, और इसी कारण बहुत-सी दुर्घटनाएं होती हैं। रात को चार बजे के करीब दुर्घटनाएं घटती हैं-सुबह चार बजे, क्योंकि ड्राइवर सारी रात गाड़ी चलाता रहा है। वह सपना नहीं देख सका, अब स्वप्न-ऊर्जा संचित होती है। वह गाड़ी चला रहा है और खुली आंखों से भ्रांतियां देखने लगता है। सड़क सीधी है, वह कहता है, 'कोई नहीं है, कोई ट्रक नहीं आ रहा।' खुली आंखें लिये ही वह किसी ट्रक से जा भिड़ता है। या, वह देखता है किसी ट्रक को आते हए और केवल उससे बचने को ही-और कोई ट्रक था नहीं वहां-केवल उससे बचने को वह अपनी कार की टक्कर लगवा लेता है पेड़ के साथ।
बहुत खोज की गयी है इस पर कि क्यों चार बजे के करीब इतनी सारी दुर्घटनाएं होती हैं। वस्तुत: चार बजे के करीब तुम बहुत सपने देखते हो। चार से लेकर पांच या छह बजे तक, तुम ज्यादा सपने देखते हो, यह होता है स्वप्न-काल। तुम अच्छी तरह सो चुके हो; अब नींद की कोई आवश्यकता नहीं, तो तुम सपने देख सकते हो। सुबह तुम सपने देखते हो। और यदि उस समय तुम सपने नहीं देखते या तुम्हें सपने नहीं देखने दिये जाते तो तुम भ्रम निर्मित कर लोगे। तुम खुली आंखों से सपने देखने लगोगे।
भ्रम का अर्थ होता है-खुली आंखों का सपना। लेकिन हर कोई इसी ढंग से सपने देख रहा है। तुम एक सी को देखते और तुम सोचते हो कि वह परम सुंदरी है। हो सकता है ऐसी बात न हो। तुम शायद भ्रम को उस पर प्रक्षेपित कर रहे हो। हो सकता है कामवासना के कारण तुम भूखे हो। तब ऊर्जा होती है और तुम मोहित होते हो। दो दिन के बाद, तीन दिन के बाद सी साधारण दिखने लगती है। तुम सोचते हो तुम्हें धोखा दिया गया है। कोई नहीं दे रहा है तुम्हें धोखा सिवाय तुम्हारे स्वयं के। तुम सम्मोहित हो गये थे। प्रेमी एक-दूसरे को मोहित करते हैं। वे सपने देखते हैं खुली आंखों से और फिर वे हताश हो जाते हैं। किसी का दोष नहीं होता। ऐसी तुम्हारी अवस्था ही है।
पतंजलि कहते हैं भ्रम तिरोहित हो जायेगा यदि तुम ध्यानपूर्वक ओम् का जप करो। कैसे घटेगा यह? भ्रम का अर्थ होता है स्वप्नमयी अवस्था-वह अवस्था जहां तुम खो जाते हो। तुम अब होते ही नहीं, केवल सपना होता है वहां। यदि तुम ओम् का ध्यान करो, तो तुम ओम् का नाद निर्मित कर लेते हो और तुम होते हो एक साक्षी। तुम हो वहां। तुम्हारी मौजूदगी किसी सपने को घटित नहीं होने दे सकती। जब कभी तुम मौजूद हो, कोई सपना नहीं होता। जब कभी सपना मौजूद होता है, तुम नहीं होते हो। दोनों साथ-साथ नहीं हो सकते। यदि तुम होते हो वहां तो सपना तिरोहित हो जायेगा या तुम्हें तिरोहित होना होगा। तुम और सपना, दोनों एक साथ नहीं बने रह सकते। स्वप्र और जागरूकता कभी नहीं मिलते। इसीलिए श्रम तिरोहित हो जाता है ओम के नाद का साक्षी बनकर।
असमर्थता-असमर्थता, दुर्बलता भी निरंतर अनुभव की जाती है। तुम स्वयं को निस्सहाय अनुभव करते हों-यही है असमर्थता। तुम अनुभव करते हो कि तुम कुछ नहीं कर सकते, कि तुम व्यर्थ हो, किसी काम के नहीं। तुम दिखावा करते होओगे कि तुम कुछ हो, लेकिन तुम्हारा दिखावा भी