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है जहां से बोध समग्र होता है। चेतना वही है; कुछ नहीं बदला है। सम्बोधि को उपलब्ध हुए व्यक्ति की वही चेतना है जैसे कि परम अवस्था की चेतना की होती है-जैसे कि एक भगवान की होती है। चेतना का कोई भेद नहीं लेकिन बोध, बोध का क्षेत्र, वह भिन्न होता है। अब वह चारों ओर देख सकता है।
बुद्ध और महावीर के समय में एक बड़ा विवाद हुआ था, इस प्रश्न के लिए इस बिन्दु पर उसे समझ लेना उपयोगी होगा। एक विवाद हुआ था - महावीर के अनुयायी कहा करते थे कि महावीर सर्वशक्तिमान हैं, सर्वज्ञ हैं, सर्वव्यापी हैं, सब कुछ जानते हैं। एक तरह से वे सही हैं क्योंकि एक बार तुम पदार्थ और देह से मुक्त हो जाते हो तो तुम भगवान हो जाते हो लेकिन एक तरह से वे गलत थे, क्योंकि देह से तो तुम शायद मुक्त हो सकते हो, लेकिन तुमने अभी भी इसे छोड़ा नहीं है। तादात्म्य टूट चुका है; तुम जानते हो कि तुम देह नहीं हो पर फिर भी तुम हो तो उसी में
यह ऐसा है जैसे कि तुम किसी घर में रहते हो; फिर अचानक तुम जान जाते हो कि यह जो घर है, तुम्हारा नहीं है। यह किसी और का घर है और तुम तो बस इसमें रह रहे थे। लेकिन फिर भी, घर छोड़ने के लिए तुम्हें व्यवस्थाएं तो करनी पड़ेगी, तुम्हें कुछ चीजें हटानी पड़ेगी। और इसमें समय लगेगा। तुम जानते हो यह घर तुम्हारा नहीं, इसलिए तुम्हारा भाव बदल गया है। अब तुम्हें इस घर की चिन्ता नहीं, इसकी चिन्ता नहीं कि इसका क्या होगा। यदि अगले दिन यह गीर जाता है और खण्डहर हो जाता है, तो तुम्हें इससे कुछ नहीं होता। यदि अगले दिन तुम्हें इसे छोड़ना है और आग लग जाती है, तो इससे तुम्हें कुछ नहीं होता। यह किसी और का है। कुछ देर पहले ही तुम्हारा घर के साथ तादात्म्य बना हुआ था; वह तुम्हारा घर था। यदि आग लगती, यदि मकान गिर जाता, तुम चिंतित हो जाते। अब वह तादात्म्य टूट गया है।
एक अर्थ में महावीर के अनुयायी सही हैं, क्योंकि जब तुम स्वयं को जान लेते हो, तो तुम सर्वज्ञ बन चुके होते हो। लेकिन बुद्ध के अनुयायी कहा करते थे कि यह बात सही नहीं है। बुद्ध जान सकते हैं यदि वे चाहते ही हों कुछ जानना, लेकिन तो भी वे सर्वज्ञ नहीं हैं। वे कहा करते थे कि यदि बुद्ध चाहें, वे अपना ध्यान किसी भी दिशा में केन्द्रित कर सकते हैं। और जहां कहीं वे अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं, वे जानने में सक्षम होंगे। वे सर्वत्रता पाने में सक्षम हैं, लेकिन वे सर्वज्ञ नहीं हैं। भेद सूक्ष्म है, नाजुक है, मगर सुन्दर है। वे कहते थे कि यदि बुद्ध हर बात और सारी चीजें निरंतर रूप से जानते, तो वे पगला ही जाते यह शरीर इतना ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकता
वे भी ठीक हैं। देहधारी बुद्ध कोई भी चीज जान सकता है यदि वह उसे जानना चाहे तो । उनका चैतन्य देह के कारण एक टॉर्च की भांति होता है। तुम टॉर्च लेकर अंधेरे में जाते हो, तुम कुछ भी जान सकते हो यदि उसे कहीं तुम फोकस कर दो, केन्द्रीभूत कर दो, प्रकाश तुम्हारे साथ है लेकिन एक टॉर्च टॉर्च ही है, वह कोई ज्योति नहीं है ज्योति तमाम दिशाओं में प्रकाश पहुंचायेगी, टॉर्च एक विशिष्ट दिशा में केन्द्रित होती है जहां कहीं तुम चाहो वहीं एक टॉर्च का कोई चुनाव नहीं होता। तुम