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निकल आओ। और ऐसे लोग हैं, लगभग पचास प्रतिशत जिन्हें तंत्र अनुकूल पड़ेगा। और लोग हैं वे भी पचास प्रतिशत हैं, जिनके अनुकूल होगा योग। व्यक्ति को खोजना पड़ता है कि उसके क्या अनुकूल पड़ेगा। दोनों का ही प्रयोग किया जा सकता है और दोनों के द्वारा लोग पहुंचते हैं। और न तो कोई गलत है और न ही कोई सही है। यह तुम पर निर्भर करता है। एक तुम्हारे लिए ठीक होगा, और कोई एक गलत होगा तुम्हारे लिए-पर खयाल रहे, तुम्हारे लिए ही। यह परम निरपेक्ष कथन नहीं होता है।
कोई बात तुम्हारे लिए सही हो सकती है और किसी के लिए गलत। और दोनों प्रणालियां-तंत्र और योग, दोनों एक साथ जन्मी थीं। ठीक एक समय पर ही। वे जुड़वां प्रणालियां हैं। यही है समकालिकता। जैसे खी और पुरुष को एक-दूसरे की आवश्यकता होती है, तंत्र और योग को एकदूसरे की आवश्यकता है। वे एक संपूर्ण चीज बनते हैं। यदि केवल योग ही अस्तित्व में आया होता, तो केवल पचास प्रतिशत ही पहुंच सकते थे। दूसरे पचास प्रतिशत तो तकलीफ में पड़ जाते। यदि केवल तंत्र ही होता तो भी केवल पचास प्रतिशत पहुंच सकते थे। बाकी दूसरे पचास प्रतिशत तकलीफ में पड़ गये होते। और ऐसा घट चुका है।
कभी यदि तुम गुरु के बिना चलते हो न जानते हुए कि तुम कहां बढ़ रहे हो, तुम क्या कर रहे हो, कौन हो तुम और क्या अनुकूल होगा तुम्हारे, तो तुम मुश्किल में पड़ जाओगे। हो सकता है तुम एक खी हो पुरुष के रूप में सजे हुए, और तुम स्वयं को सोचते हो एक पुरुष; तब तो मुश्किल में पड़ोगे। हो सकता है कि तुम पुरुष हो सी के वेश में सजे हुए, और तुम सोचते हो स्वयं को सी; तुम मुश्किल में पड़ोगे।
___मुश्किल खड़ी होता है तब जब तुम नहीं समझते कि तुम हो कौन। गुरु की जरूरत होती है तुम्हें एक सुस्पष्ट दिशा देने को ही कि क्या-क्या है तुम्हारे अनुरूप। तो खयाल रहे, जब कभी मैं कहता हूं कि यह या वह तुम्हारे लिए है, तो उसे दूसरे तक मत फैलाना। क्योंकि इसे विशेष रूप से कहा गया है तुम्हें ही। लोग तो कुतूहलभरे है। यदि तुम उन्हें यह कह देते हो, तो वे इसे आजमायेंगे। हो सकता है यह उनके लिए न हो। यह हानिकारक भी हो सकता है। और ध्यान रखना, यदि यह लाभकर नहीं तो यह हानिकर ही होनेवाला है। दोनों के बीच की कोई बात नहीं होती है। कोई चीज या तो सहायक होती है या गैर सहायक।
शिथिल निर्जीवता सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है, लेकिन यह तिरोहित हो जाती है ओम् के जप द्वारा। ओम् तुम्हारे भीतर निर्मित करता है शिवलिंग को, अंडाकार ऊर्जा-वृत्त को। अब तुम्हारा बोध सूक्ष्म हो जाता है। तुम इसे देख भी सकते हो। यदि कुछ मास तक आंखें बंद करके ओम् का जप करते हो, ध्यान करते हो, तो तुम इसे तुम्हारे भीतर देख पाओगे। तुम्हारी देह तिरोहित हो चुकी होगी। वहां होगी मात्र प्राण-ऊर्जा ही, वह विदयुत-घटना ही। और वह आकार होगा शिवलिंग का
आकार।