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अवस्था होती है। तब तुम बहुत बिगड़े हुए आकार में होते हो। यदि तुम किसी बात का निर्णय नहीं ले सकते, तो कैसे तुम कुछ कर सकते हो? किस प्रकार तुम कार्य कर सकते हो?
'ओम्' - निनाद और ध्यान-कैसे देगा मदद ? यह देता है मदद, क्योंकि एक बार तुम निस्तरंग, मौन हो जाते हो, तो निर्णय लेना ज्यादा आसान हो जाता है। तब तुम एक भीड़ न रहे, अब कोई अव्यवस्था न रही। अब बिना तुम्हारे जाने कि कौन-सी आवाज तुम्हारी है, बहत सारी आवाजें इकट्ठी नहीं बोलतीं। ओम् सहित-उसका जप करते हुए, उस पर ध्यान करते हुए-आवाजें शांत, मौन हो जाती हैं। अब तुम समझ सकते हो कि सारी आवाजें तुम्हारी नहीं हैं। तुम्हारी मां बोल रही होती है, तुम्हारे पिता बोल रहे होते हैं, तुम्हारे भाई, तुम्हारे शिक्षक बोल रहे होते हैं। आवाजें तुम्हारी नहीं हैं। उन्हें तुम आसानी से अलग कर सकते हो क्योंकि उन्हें मनोयोग से संभालने की जरूरत नहीं होती है।
जब ओम् के जप तले तुम शांत हो जाते हो, तो तुम आश्रय पा जाते हो; शांत, मौन, एकजुट हो जाते हो। उसी स्वाभाविक सुव्यवस्था में तुम देख सकते हो कि तुमसे आ रही वह वास्तविक आवाज कौन-सी है, जो कि प्रामाणिक है। इसे ऐसा समझो जैसे कि तुम बाजार में खड़े हुए हो, और बहुत लोग बातें कर रहे हैं और बहुत सारी चीजें चल रही हैं वहां, और तुम निर्णय नहीं ले सकते कि क्या घट रहा है। शेयर मार्केट में लोग चिल्लाते रहते है। उन्हें अपनी भाषा का पता रहता है, लेकिन तुम नहीं समझ सकते कि क्या हो रहा है कि वे पागल हो गये है या नहीं।
___ फिर तुम जाते हो हिमालय के आश्रय की ओर। तुम एक गुफा में बैठ जाते हो और बस जप करते हो। तुम मात्र शांत कर लेते हो स्वयं को और सारी घबड़ाहट गायब हो जाती है। तुम एक हो जाते हो। उस क्षण में निर्णय लेना संभव होता है। तब निर्णय करना और फिर वापस मुड़कर नहीं देखना। फिर भूल जाना। निर्णय हो गया है। अब वापस लौटना नहीं होगा। अब आगे बढ़ जाना।
कई बार संशय पीछे आयेगा। यह एक कुत्ते की भांति ही भौं- भौं करेगा तुम पर। लेकिन यदि तुम मत सुनो, यदि तुम कोई ध्यान न दो, तो धीरे-धीरे यह समाप्त हो जाता है। इसे मौका देना। जो संभव है उन तमाम संभावनाओं पर विचार कर लेना, और एक बार तुम निर्णय ले लेते हो, तो गिरा देना संशय को। और ओंकार, ओम् का ध्यान तुम्हारी मदद करेगा निश्चितता तक आ पहुंचने में। यहां संशय का अर्थ है अनिश्चितता।
तीसरी बाधा है असावधानी। संस्कृत शब्द है प्रमाद। प्रमाद का अर्थ होता है, वह अवस्था जो कि ऐसी होती जैसे कोई नींद में चल रहा है। असावधानी इसी का हिस्सा है। ठीक-ठीक बात का ऐसा अर्थ होगा, 'जीवित शव मत बनो। सम्मोहनावस्था के अंतर्गत मत चलो। '
लेकिन तुम हिप्नासिस में, सम्मोहनावस्था में जीते हो, इसे बिलकुल न जानते हुए। सारा समाज तुम्हें सम्मोहित करने का प्रयत्न कर रहा है कुछ निश्चित बातों के लिए, और यह बात प्रमाद