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हड्डी सीधे किये बैठा रहता है। यदि रीढ़ सीधी होती है और तुम बैठे हुए हो, तो तुम ज्यादा ऊर्जा बनाये रखोगे किसी अन्य तरीके की अपेक्षा। क्योंकि जब रीढ़ सीधी बनी रहती है, तो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तुममें से बहुत ऊर्जा नहीं ले सकता। गुरुत्वाकर्षण रीढ़ के आधार पर केवल एक स्थल का स्पर्श करता है। जब तुम झुकी हुई मुद्रा में बैठे हुए होते हो, अधलेटे झुके हुए, तो तुम सोचते हो, तुम आराम कर रहे हो। लेकिन पतंजलि कहते हैं, तुम ऊर्जा बाहर निकाल रहे हो, क्योंकि तुम्हारे शरीर का ज्यादा भाग तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में होता है।
यह बात मदद नहीं देगी। सीधी रीढु सहित, साथ जुड़े हाथों और टांगों सहित, आंखें बंद रखे हुए तुम एक वर्तुल बन चुके होते हो। वह वर्तुल, वह चक्र निरूपित होता है शिवलिंग द्वारा। तुमने देखा है न शिवलिंग-लिंग-प्रतीक, जिस रूप का वह पश्चिम में जाना जाता है। वस्तुत: वह है आंतरिक प्राण-ऊर्जा का घेरा, बिलकुल अंडे के आकार का।
__जब तुम्हारी देह-ऊर्जा ठीक प्रकार से प्रवाहमान होती है, तो यह अंडाकार हो जाती है। अंडे की भांति ही आकार होता है,ठीक एकदम अंडे की भांति। वही प्रतीक के रूप में उतरता है शिवलिंग में। तुम हो जाते हो शिव। जब ऊर्जा बार-बार तुममें प्रवाहित होती है, बाहर नहीं जा रही होती तब निर्जीवता तिरोहित हो जाती है। यह बातें करने से नहीं होगी तिरोहित, यह शाख पढ़ने दवारा तिरोहित नहीं होगी, यह चिंतन-मनन करने से तिरोहित नहीं होगी। यह केवल तभी तिरोहित होगी जब तुम्हारी ऊर्जा बाहर न जा रही हो।
इसे सुरक्षित रखने की, संजोए रखने की कोशिश करना। जितना ज्यादा तुम इसे बनाये रहते हो, उतना ही अच्छा होता है। लेकिन पश्चिम में बिलकुल विपरीत बात ही सिखायी जा रही है-कि कामवासना दवारा ऊर्जा को निष्कासित कर देना अच्छा होता है। किसी न किसी बात दवारा ऊर्जा मुक्त कर देना। ऐसा अच्छा होता है यदि तुम इसका किसी दूसरे तरीके से प्रयोग नहीं कर रहे होते; अन्यथा तो तुम पागल हो जाओगे। और जब कभी बहुत ज्यादा हो जाती है ऊर्जा तो उसे कामवासना दवारा निष्कासित कर देना बेहतर ही है। कामवासना सरलतम विधि है इसे मुक्त करने
की।
लेकिन इसका उपयोग हो सकता है। इसे सृजनात्मक बनाया जा सकता है। यह तुम्हें पुनर्जन्म दे सकती है, पुनर्जीवन दे सकती है। इसके द्वारा तुम लाखों सुखद अवस्थाओं को जान सकते हो; इसके द्वारा तुम ज्यादा और ज्यादा ऊंचे उठ सकते हो। यह सीढ़ी है परमात्मा तक पहुंचने की। यदि तुम इसे हर रोज निष्कासित किये जाते हो, तो तुम कभी परमात्मा की ओर पहला कदम बढाने के लिए भी पर्याप्त ऊर्जा का निर्माण नहीं कर पाओगे। इसे संचित करो।
पतंजलि कामवासना के विपरीत है। और यही भेद है पतंजलि और तंत्र में। तंत्र कामवासना का प्रयोग एक विधि की भांति करता है; पतंजलि चाहते हैं तुम इससे कतरा कर इसके बाजू से आगे