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शब्द के मूल तक चले जाना सदा अच्छा होता है क्योंकि वे उभरते है मानवता के लंबे अनुभव से। शब्द संयोगिक रूप से नहीं आये हैं। जब कोई व्यक्ति संपूर्ण अनुभव करता है, तब उसकी दैहिक ऊर्जा वर्तुल में गतिमान हो रही होती है। वर्तुल संसार की सबसे ज्यादा पूर्ण चीज है। पूर्ण वर्तुल परमात्मा का एक प्रतीक है। ऊर्जा व्यर्थ नहीं हो रही यह चक्र में घूमती है बार-बार। यह चक्र की भांति स्वयं बनी रहती है।
जब तुम 'होल' होते हो तो तुम स्वस्थ होते हो, और जब तुम स्वस्थ होते हो तो पवित्र भी होते हो। क्योंकि वह शब्द'होली' भी आता है 'होल' से। एक संपूर्णतया स्वस्थ व्यक्ति पवित्र होता है। लेकिन तब समस्याएं खड़ी होंगी। यदि तुम चले जाओ मठों में, वहां तुम पाओगे सब प्रकार के बीमार व्यक्ति। स्वस्थ व्यक्ति तो पूछेगा कि उसे किसी मदिर-मठ में क्या करना है! बीमार लोग जाते हैं वहां, अस्वाभाविक लोग जाते है वहां। बुनियादी तौर से कुछ गलत होता है उनके साथ। इसीलिए वे दुनियां से पलायन करते और वहां चले जाते हैं।
पतंजलि इसे पहला नियम बना लेते हैं कि तुम्हें स्वस्थ होना चाहिए, क्योंकि अगर तुम स्वस्थ नहीं हो तो तुम ज्यादा दूर नहीं जा सकते। तुम्हारी बीमारी, तुम्हारी बेचैनी, तुम्हारा आंतरिक ऊर्जा का टूटा हुआ वर्तुल, तुम्हारे गले को घेरता-दबाता हुआ एक पत्थर होगा। जब तुम ध्यान करते हो, तुम अनुभव करोगे अशांति, बेचैनी। जब तुम प्रार्थना करना चाहोगे, तब तुम न कर पाओगे प्रार्थना। तम आराम करना चाहोगे। ऊर्जा का निम्न-तल होगा वहां। और किसी ऊर्जा के न रहते कैसे तुम आगे जा सकते हो? कैसे तुम परमात्मा तक पहुंच सकते हो? और पतंजलि के लिए परमात्मा दूरतम तत्व है। ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन, स्वस्थ स्व-सत्ता की आवश्यकता होती है। रोग 'डिसीज' है डिस-ईज-देह-ऊर्जा में असहजता। ओम् मदद देगा और दूसरी चीजें भी। हम उनकी चर्चा करेंगे। लेकिन यहां पतंजलि बात कर रहे है इस विषय में कि ओम् की ध्वनि किस प्रकार भीतर तुम्हें मदद देती है संपूर्ण हो जाने में।
पतंजलि के लिए और बहुतों के लिए जिन्होंने गहरे रूप से मानव-ऊर्जा में खोज की है, एक तथ्य तो बहुत सुनिश्रित हो चुका है, और तुम्हें इसके बारे में जान लेना चाहिए-वह यह कि, जितने ज्यादा तुम बीमार होते हो, उतने ज्यादा तुम विषयासक्त होते हो। जब तुम पूर्णतया स्वस्थ होते हो तो तुम विषयासक्त नहीं होते। साधारणतया हम एकदम विपरीत सोचते है-कि एक स्वस्थ व्यक्ति को विषयासक्त, कामुक और बहुत कुछ होना होता है। उसे संसार और शरीर में रस लेना होता है। ऐसी
तुम बीमार होते हो, तब ज्यादा विषयासक्ति, ज्यादा कामवासना तुम्हें जकड़ लेती है। जब तुम पूर्णतया स्वस्थ होते हो, तो कामवासना और विषयासक्ति तिरोहित हो जाती है।
नहीं है अवस्था। जब तुम बामार हात हा, तब ज्याद
क्यों घटता है ऐसा? क्योंकि जब तुम संपूर्णतया स्वस्थ होते हो तुम स्वयं के साथ ही इतने प्रसन्न होते हो कि तुम्हें दूसरे की आवश्यकता नहीं होती। जब तुम बीमार होते हो, तब तुम इतने अप्रसन्न होते हो तुम्हारे साथ कि तुम्हें दूसरा चाहिए होता है। और यही है विरोधाभास; जब तुम