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नहीं है। यह तो मन है, जिसे बदलना है। और मन का अर्थ है इच्छाएं। शरीर आवश्यकता की मांग रखता है, लेकिन शारीरिक आवश्यकताएं वास्तविक आवश्यकताएं होती हैं।
यदि तुम जीना चाहते हो, तो तुम्हें भोजन चाहिए। प्रसिद्धि की जरूरत नहीं होती है जीने के लिए, इज्जत की जरूरत नहीं है जीवित रहने के लिए। तुम्हें जरूरत नहीं होती बहुत बड़ा आदमी होने की या कोई बड़ा चित्रकार होने की प्रसिद्ध होने की, जो सारे संसार में जाना जाता है। जीने के लिए तुम्हें नोबेल पुरस्कार विजेता होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि नोबेल पुरस्कार शरीर की किसी जरूरत की परिपूर्ति नहीं करता है।
यदि तुम आवश्यकताओं को गिराना चाहते हो, तो तुम्हें उनका दमन करना होगा क्योंकि वे वास्तविक होती है। यदि तुम उपवास करते हो, तो तुम्हें भूख का दमन करना पड़ता है। तब दमन होता है। और हर दमन गलत है क्योंकि दमन एक भीतरी लड़ाई है। तुम शरीर को मारना चाहते हो, और शरीर तुम्हारा लंगर होता है, तुम्हारा जहाज जो तुम्हें दूसरे किनारे तक ले जायेगा । शरीर खजाना सम्हाले रखता है, तुम्हारे भीतर ईश्वर के बीज को सुरक्षित रखता है। भोजन की आवश्यकता होती है उस संरक्षण के लिए, पानी की आवश्यकता होती है, मकान की आवश्यकता होती है, आराम की आवश्यकता होती है-शरीर के लिए। मन को किसी आराम की जरूरत नहीं होती है।
जरा आधुनिक फर्नीचर को देखो, यह बिलकुल आरामदेह नहीं होता। लेकिन मन कहता है, 'यह आधुनिक है और तुम यह क्या कर रहे हो, पुरानी कुर्सी पर बैठे हो ? जमाना बदल गया है और नया फर्नीचर आ गया है।' आधुनिक फर्नीचर सचमुच ही भयंकर ( वीयर्ड) होता है। तुम उस पर बैठे बेचैनी महसूस करते हो; तुम बहुत देर उस पर नहीं बैठ सकते। पर फिर भी यह आधुनिक तो होता है। मन कहता है आधुनिक को तो वहां होना ही चाहिए क्योंकि कैसे तुम पुराने हो सकते हो? आधुनिक होना है!
आधुनिक पोशाकें असुविधा भरी होती हैं, लेकिन तो भी वे आधुनिक हैं, और मन कहता है कि तुम्हें तो फैशन के साथ ही चलना है और आदमी बहुत सारी भद्दी चीजें कर चुका है फैशन के ही कारण । शरीर कुछ नहीं चाहता, ये मन की मांगें हैं और तुम उन्हें पूरा नहीं कर सकते -कभी नहीं, क्योंकि वे अवास्तविक होती हैं। केवल अवास्तविकता ही परिपूर्ण नहीं की जा सकती। कैसे तुम अवास्तविक आवश्यकता को परिपूर्ण कर सकते हो जो कि वस्तुतः वहां हो ही नहीं?
प्रसिद्धि की क्या आवश्यकता है? जरा ध्यान करना इस बात पर आंखें बंद करो और देखो। शरीर में इसकी आवश्यकता कहां पड़ती है? यदि तुम प्रसिद्ध हो तो क्या तुम ज्यादा स्वस्थ हो जाओगे? क्या तुम ज्यादा शांतिपूर्ण, ज्यादा मौन हो जाओगे, यदि प्रसिद्ध हो जाओ तो? क्या मिलेगा तुम्हें इस बात से?