________________ कर लेते हो। अगर हर चीज गलत है तो तुम प्रसन्न कैसे हो सकते हो? और यह तुम्हारा निर्माण है, और तुम हमेशा कुछ गलत खोज कर सकते हो, क्योंकि जीवन द्वैत से बना होता है। गुलाब की झाड़ी में सुंदर फूल होते हैं, लेकिन कांटे भी होते हैं। कुतर्क' वाला आदमी कांटों की गिनती करेगा, और फिर वह इस समझ तक आ पहुंचेगा कि यह गुलाब तो भ्रामक ही होगा; यह हो नहीं सकता। बहुत सारे कीटों के बीच, लाखों काटों के बीच, एक गुलाब कैसे बना रह सकता है? यह असंभव है। यह संभावना ही त्याज्य हो जाती है। जरूर कोई धोखा दे रहा है। मुल्ला नसरुद्दीन बहुत उदास था। वह पादरी के पास गया और बोला, 'क्या करूं? मेरी फसल फिर बरबाद हो गयी है। बारिश नहीं हुई।' पादरी बोला, 'इतने उदास मत होओ, नसरुद्दीन। जिंदगी के ज्यादा रोशन पहलू की ओर देखो। तुम खुश हो सकते हो क्योंकि फिर भी तुम्हारे पास बहुत ज्यादा है। और हमेशा ईश्वर पर भरोसा रखो, जो दाता है। वह आकाश में उड़ते पक्षियों के लिए भी जुटा देता है, तो तुम क्यों चिंतित हो?' नसरुद्दीन बहुत कटुतापूर्वक बोला, 'हां मेरे अनाज द्वारा! ईश्वर आकाश के पक्षियों का इंतजाम करता है मेरे अनाज द्वारा!' वह बात नहीं समझ सकता। उसकी फसल इन पक्षियों द्वारा नष्ट हुई है, और ईश्वर उनका भरण-पोषण कर रहा है, इसलिए वह कहता है, 'मेरी फसल बरबाद हुई है।' इस प्रकार का मन हमेशा कुछ न कुछ खोज निकालेगा, और हमेशा क्षुब्ध रहेगा। चिंता छाया की भांति उसका पीछा करेगी। इसे पतंजलि कहते हैं कुतर्कनिषेधात्मक तर्क, निषेधात्मक तर्कणा। फिर है तर्क-सीधा तर्क। सीधा तर्क कहीं नहीं ले जाता। यह एक चक्कर में घूम रहा है क्योंकि इसका कोई ध्येय नहीं है। तम तर्क और तर्क और तर्क किये चले जा सकते हो, लेकिन तम किसी निश्चय तक नहीं पहुंचोगे। क्योंकि तर्क किसी निश्चय तक केवल तभी पहुंचता है, जब बिलकुल आरंभ से ही कोई ध्येय हो। अगर तुम एक दिशा में बढ़ रहे हो, तब तुम कहीं पहुंचते हो। अगर तुम सब दिशाओं में बढ़ रहे हो-कभी दक्षिण में, कभी पूर्व में, कभी पश्चिम में, तो तुम ऊर्जा गंवाते हो। बिना ध्येय का विचार तर्क कहलाता है; निषेधात्मक रुख वाला तर्क कुतर्क कहलाता है; विधायक भूमि वाला तर्क वितर्क कहलाता है। वितर्क का अर्थ है, विशिष्ट तर्क। तो वितर्क प्रथम तत्व है संप्रज्ञात समाधि का। जो व्यक्ति आंतरिक शांति पाना चाहता है उसे वितर्क में प्रशिक्षित होना होता है-विशिष्ट तर्क। वह सदा ज्यादा प्रकाशमय पक्ष की ओर, विधायक की ओर देखता है। वह फूलों को महत्व देता है और कांटों को भूल जाता है। ऐसा नहीं है कि कांटे नहीं हैं, लेकिन उसे उनसे कुछ लेना-देना नहीं। अगर तुम फूलों से प्रेम करते हो और फूलों को गिनते रहते हो, तो एक क्षण आता है जब तुम कांटों में विश्वास नहीं कर सकते। क्योंकि यह कैसे संभव है कि जहां इतने सुंदर फूल विद्यमान हों, वहीं कांटे बने रहते हों! कहीं कुछ भ्रामकता होगी।