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परवाह नहीं करते। जब प्रेम कर चुकते हो, तब तुम मुसकुरा कर विदा नहीं लेते। तुम सी को धन्यवाद नहीं देते। इसलिए सी स्वयं को इस्तेमाल किया हुआ अनुभव करती है।
तुम्हारी प्रगाढ़ता जैविक है, शारीरिक है; तुमसे कुछ नहीं पहुंच रहा। कामवासना की प्रगाढ़ता में पूर्वक्रीड़ा, फोरप्ले होता है लेकिन आफ्टरप्ले, पश्चात-क्रीड़ा कोई नहीं। यह शब्द सचमुच अस्तित्व नहीं रखता। मैंने काम पर लिखी हजारों पुस्तकें देखीं, यह शब्द' आफ्टरप्ले' उनमें अस्तित्व नहीं रखता। किस प्रकार का प्रेम है यह? शरीर की जरूरत पूरी होते ही प्रेम समाप्त हो जाता है। सी का उपयोग कर लिया गया; अब तुम उसे फेंक सकते हो। जैसे तुम कोई चीज इस्तेमाल करते हो और फेंक देते हो। उदाहरण के लिए प्लास्टिक का कोई पात्र-तुम इसे इस्तेमाल करते हो और इसे फेंक देते हो। खत्म हो जाती है बात। जब इच्छा फिर से उठेगी, तो फिर तुम सी की ओर देखोगे, और उस सी के प्रति तुम बहुत भावप्रवण हो जाते हो।
नहीं, पतंजलि इस प्रकार की प्रगाढ़ता के लिए नहीं कहते। मैंने कामवासना की बात उठायी जिससे कि तुम्हें स्पष्ट कर दूं क्योंकि मात्र वही प्रगाढ़ता है जो तुम्हारे साथ बाकी बची है। कोई अन्य उदाहरण संभव नहीं। तुम अपने जीवन में इतने कुनकुने हो चुके हो, तुम ऊर्जा के इतने निम्न तल पर जीते हो कि कोई प्रागढ़ता है नहीं। किसी तरह तुम आफिस जाते हो। जरा सड़क के एक कोने में खड़े हो जाओ, जब लोग अपने दफ्तरों की ओर तेजी से चले जा रहे होते हैं, जरा उनके चेहरों को देखो-वे निर्जीव होते हैं।
कहां जा रहे होते हैं वे? क्यों जा रहे होते हैं? ऐसा जान पड़ता है जैसे कि उनके पास दूसरी कोई जगह नहीं है जाने को,तो वे दफ्तर की ओर जा रहे हैं! वे और कुछ कर नहीं सकते। वरना क्या करेंगे वे घर पर? इसलिए वे दफ्तर की ओर जा रहे हैं-ऊबे हुए, स्वचालित यंत्र की भांति, यंत्र-मानव जैसे। जा रहे हैं क्योंकि हर कोई दफ्तर जा रहा है और यह जाने का समय है। और यदि तुम जाना न चाहो तो? करोगे क्या? छुट्टियां इतनी पीड़ादायक बन जाती हैं। कोई प्रगाढ़ता नहीं होती। लोगों की ओर देखो शाम को घर लौटते हए। नहीं जानते फिर क्यों जा रहे हैं वे। लेकिन कहीं और जाने को है नहीं, तो किसी तरह वे जिंदगी घसीट रहे हैं।
__ वे कुनकुने हैं। यह एक निम्न ऊर्जा का तल है। इसलिए मैंने कामवासना का उदाहरण दिया क्योंकि कोई दूसरी प्रगाढ़ता मैं नहीं पा सकता तुममें। तुम गाते नहीं, तुम नाचते नहीं, तुममें कोई प्रगाढ़ता नहीं। तुम हंसते नहीं, तुम रोते नहीं। सारी प्रगाढ़ता जा चुकी। कामवासना में थोडी प्रगाढ़ता बनी है और वह भी प्रकृति के कारण, तुम्हारे कारण नहीं।
पतंजलि कहते हैं, 'प्रगाढ़ और सच्चा।' धर्म वास्तव में कामवासना जैसा है। ज्यादा गहन है कामवासना से, उच्चतर है कामवासना से, ज्यादा पवित्र है कामवासना से, लेकिन है यौन की भांति। यह एक व्यक्ति का मिलन है संपूर्ण से यह एक गहन संभोग है। तुम संपूर्ण में घुल-मिल जाते हो