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योगसूत्र:
पूर्वेषामपिगुरु कालेनानवच्छेदात्।। 26।।
समय की सीमाओं के बाहर होने के कारण वह गुरुओं का गुरु है।
तस्य वाचकः प्रणव::// 2711
उसे ओम् के रूप में जाना जाता है।
तजपस्तदर्थभावनम्।। 2811
ओम को दोहराओ और इस पर ध्यान करो।
ततः प्रत्यक्येतनाधिगमोऽप्यन्तरायाभाव।। 2911
ओम को दोहराना और उस पर ध्यान करना सारी बाधाओं का विलीनीकरण और एक नवचेतना का जागरण लाता है।
पतंजलि परमात्मा की घटना के बारे में कह रहे है। परमात्मा स्रष्टा नहीं है। पतंजलि के
लिए परमात्मा है अ? वैयक्तिक चेतना का परम रूप से खिलना। हर कोई और हर चीज परमात्मा होने के मार्ग पर है। न केवल तुम्हीं, बल्कि पत्थर, चट्टानें,अस्तित्व की प्रत्येक इकाई परमात्मा होने के मार्ग पर है। कई हो ही चुके है; कई हो रहे हैं; कई होंगे।
परमात्मा स्रष्टा नहीं है, बल्कि परमोत्कर्ष है, अस्तित्व का परम शिखर। वह आरम्भ में नहीं है, वह अन्त में है। और निस्संदेह एक अर्थ में वह आरम्भ में भी है, क्योंकि अन्त में केवल वही खिल सकता है जो वहां एकदम आरम्भ से ही बीज रूप में सदा रहा है। परमात्मा है एक अंतस