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है। जब कोई बहुत एकाग्रता से तुम्हें सुनता है, कहीं बहुत गहरे में वह तुम्हारे अहंकार की परिशुद्धात करता है क्योंकि तुम अनुभव करते हो कि तुम जानते हो और वह नहीं जानता है। तुम ज्ञानी हो और वह अज्ञानी है।
ऐसा हुआ कि एक पादरी को बड़े पादरी को पागलखाने में बुलाया गया वहां रहने वालों से कुछ शब्द कहने को। पादरी ज्यादा अपेक्षा न करता था, बल्कि वह तो हैरान हो गया। एक पागल आदमी इतनी एकाग्रता से उसे सुन रहा था, और उसने किसी व्यक्ति को न देखा था उसे इतनी एकाग्रता से सुनते हुए। वह बिलकुल आगे झुका हुआ था। वह हर शब्द को हृदय में बैठा रहा था। आदमी पलक तक न झपका रहा था। वह इतना एकाग्र था कि वह जैसे सम्मोहनावस्था में हो।
जब पादरी ने अपना प्रवचन समाप्त किया, उसने देखा कि वह आदमी सुपरिटेंडेंट के पास गया है और उससे कुछ कहा है उसने पादरी को जिज्ञासा हुई। जैसे ही सम्भव हुआ, उसने सुपरिटेंडेंट से पूछा, 'वह आदमी आप से क्या कह रहा था! क्या वह मेरे प्रवचन के बारे में कुछ कह रहा था?' सुपरिटेंडेंट बोला, 'हां' पादरी ने पूछा, 'क्या आप मुझे बता सकेंगे जो उसने कहा? सुपरिटेंडेंट थोड़ा-सा हिचकिचाया, लेकिन फिर वह बोला, 'ही, उस आदमी ने कहा था, जरा देखो तो, मैं यहां भीतर और वे बाहर हैं। '
शिक्षक ठीक उसी स्थान पर है, उसी नाव में सवार है, जिस पर तुम हो। वह भी पागलखाने का अंतेवासी है। उसके पास तुमसे कुछ ज्यादा नहीं है बस थोड़ी-सी ही ज्यादा जानकारी है। जानकारी का कोई अर्थ नहीं है। तुम भी इसे इकट्ठा कर सकते हो। साधारणतया, औसत बुद्धिमानी की आवश्यकता होती है जानकारी एकत्रित करने के लिए, बहुत विशिष्ट होने की जरूरत नहीं है, बहु प्रतिभाशाली होने की जरूरत नहीं है मात्र औसत बुद्धिमानी काफी है। तुम सूचनाएं एकत्रित कर सकते हो। तुम किये चले जा सकते हो एकत्रित तुम बन सकते हो शिक्षक ।
शिक्षक वह है जो बिना जाने जानता है। यदि वह अच्छा वक्ता है, अच्छा लेखक है, यदि उसके पास व्यक्तित्व है, यदि उसके पास उसका निश्रित जादू भरा आकर्षण है, चुम्बकीय आंखें है, ओजस्वी शरीर है, तो वह लोगों को आकर्षित कर सकता है और धीरे धीरे वह अधिकाधिक कुशल बन जाता है। लेकिन उसके आस-पास के लोग शिष्य नहीं हो सकते। वे विद्यार्थी रहेंगे। चाहे वह दावा करता भी रहे कि वह गुरु है, वह तुम्हें शिष्य नहीं बना सकता। अधिक से अधिक वह तुम्हें एक विद्यार्थी बना सकता है। विद्यार्थी वह है जो और ज्यादा जानकारी की तलाश में है, और शिक्षक वह है जो ज्यादा जानकारी इकट्ठी कर चुका है। यह पहली प्रकार का गुरु होता है, जो बिलकुल गुरु नहीं होता।
फिर होता है एक दूसरी प्रकार का गुरु-वह जिसने स्वयं को जान लिया है। जो कुछ वह कहता है, वह हेराक्लतु की भांति कह सकता है- 'मैंने खोज लिया।' या बुद्ध की भांति कह सकता है