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देख सकता, क्योंकि उन सारे सपनों में से गुजर चुका है और उसने देख लिया है कि वे कहीं नहीं ले जाते हैं। वह सपना नहीं देख सकता और न ही आख खोलने का साहस जुटा सकता है, क्योंकि न्यस्त स्वार्थ हैं। उसने अपनी नींद में बहुत सारी चीजों का वचन दिया हुआ है।
जब एक रात बुदध अपने महल से चले गये, वे अपनी पली को बता देना चाहते थे कि वे जा रहे हैं। वह उस बच्चे को सहलाना चाहते थे जो एक दिन पहले ही पैदा हुआ था, क्योंकि उन्हें फिर वापस न आना था। वे कमरे के एकदम दवार तक गये। उन्होंने अपनी पत्नी की ओर देखा। वह गहरी निद्रा में सोयी हुई थी। वह जरूर सपना देख रही होगी। बालक को बाहों में लिये उसका चेहरा सुंदर था, मुसकुराता हुआ। उन्होंने कुछ क्षण प्रतीक्षा की द्वार पर, फिर वे लौट गये। वे कहना चाहते थे कि वे जा रहे हैं, लेकिन फिर वे भयभीत हो गये। यदि वे कुछ कह देते, तो पत्नी जरूर रोने लगती और चीखने लगती और एक तमाशा बना डालती।
और वे स्वयं से भी भयभीत थे, क्योंकि यदि वह रो पड़ती और चीखने-चिल्लाने लगती, तब शायद उन्हें अपने उन वचनों का खयाल आ जाता कि 'मैं तुम्हें हमेशा और हमेशा प्रेम करता रहूंगा, और मैं हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारे साथ रहूंगा।' और यह बच्चा जो मात्र एक दिन का है इसका क्या करना होगा? वह तो, निस्संदेह, बच्चे को मेरे सामने ले आयेगी, उन्होंने सोचा,और वह कहेगी, 'देखो जरा, तुम मेरे साथ क्या कर रहे हो! फिर तुमने इस बच्चे को पैदा ही क्यों होने दिया था? और अब कौन होगा इसका पिता? क्या सिर्फ मैं ही इसके लिए जिम्मेदार हूं? तुम कायर की तरह भाग रहे हो।' ये सारे विचार उनके मन में आये, क्योंकि नींद में तो हर कोई वचन देता है। हर कोई वचन दिये चला जाता है यह न जानते हुए कि वह उन्हें कैसे पूरा कर सकता है। लेकिन नींद में ऐसा होता है क्योंकि किसी को होश नहीं होता कि क्या हो रहा है।
अकस्मात वे सजग हो आये कि ये-ये बातें कही जायेंगी और फिर सारा परिवार इकट्ठा हो जायेगा-पिता और सब दूसरे। और वे पिता के इकलौते बेटे थे, और पिता उनकी ओर देख रहे होंगे; और अपनी नींद में उन्होंने वचन दिये हैं उन्हें भी। इसलिए वे बस निकल भागे। वे एकदम चोर की भांति भाग आये।
बारह वर्ष के पश्चात, जब वे वापस लौटे तो पहली बात जो पत्नी ने पूछी वह ठीक वही थी जिसके बारे में घर छोड़ने की रात उन्होंने सोचा था कि उसके मन में आयेगी। पत्नी ने उनसे पूछा, 'आपने मुझसे कह क्यों न दिया? यही पहली बात मैं आपसे पूछना चाहूंगी। इन बारह वर्षों से मैं आपकी प्रतीक्षा कर रही थी। आपने मुझसे कहा क्यों नहीं मे किस प्रकार का है यह प्रेम? आप तो मझे एकदम छोड़ गये। आप कायर है।'
बुद्ध शांतिपूर्वक सुनते रहे। जब पत्नी शांत हुई, चुप हो गयी तो वे बोले, 'ये सारे विचार मुझमें उठे थे। मै बिलकुल द्वार तक आ गया था, मैने द्वार खोल भी दिया था। मैंने तुम्हारी ओर