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बैठता, तो वे भ्रम में पड़े हैं। यह विवाह चल नहीं सकता। वे शायद सोच रहे हों कि वे रहेंगे, लेकिन वे नहीं रह सकते क्योंकि भीतर की जीव - ऊर्जा का तालमेल नहीं बैठता।
बहुत सुखी
इसलिए हो सकता है शायद तुम्हें खी की नाक पसंद आये और सी को तुम्हारी आंखें पसंद आ सकती हैं, लेकिन उसमें कोई मतलब नहीं है। आंखें पसंद करना मदद न देगा, नाक पसंद करना काम न देगा, क्योंकि दो दिन के बाद कोई नहीं देखता नाक की तरफ और आंखों की तरफ। फिर तो जीव-ऊर्जा की समस्या हो जाती है। आंतरिक ऊर्जाएं एक-दूसरे से घुलती मिलती रहनी चाहिए, अन्यथा वे दोनों विद्रोह कर देंगी। यह बिलकुल ऐसा है जैसे कि तुम रकादान लो, तो या तो तुम्हारी देह इसे ग्रहण कर लेती है या फिर उसे अस्वीकृत कर देती है। क्योंकि रका के कई प्रकार होते हैं। यदि रका उसी प्रकार का होता है, केवल तभी शरीर इसे ग्रहण करता है; वरना यह एकदम अस्वीकृत ही कर देता है।
यही विवाह में घटता है यदि जीव ऊर्जा स्वीकार करती है तो यह स्वीकार होता है और कोई सचेतन ढंग नहीं है इसे जानने का। प्रेम बहुत भांति पैदा करवाता है क्योंकि प्रेम सदा किसी खास चीज पर केंद्रित होता है सी की आवाज अच्छी हो, और तुम मोहित हो जाते हो। लेकिन पूरी बात यह नहीं है। यह एक आशिक चीज है संपूर्ण का तालमेल होना चाहिए। दो जीव ऊर्जाओं को इतनी समग्रता से एक-दूसरे को ग्रहण करना चाहिए कि गहन तल पर तुम एक प्राण हो जाओ। यह होती है एकात्मता। ऐसा बहुत कम घटता है प्रेम में क्योंकि सही साथी को खोजने की समस्या है। यह तो और भी दुःसाध्य है मात्र प्रेम में पड़ना पकी कसौटी नहीं है हजार प्रेम संबंधों में से नौ सौ निन्यानबे बार प्रेम असफल होता है प्रेम एक असफलता सिद्ध हुआ है।
इससे कहीं ज्यादा गहन आत्मीयता घटती है गुरु के साथ यह प्रेम से ज्यादा बड़ी होती है। यह श्रद्धा है। केवल तुम्हारे प्राण ऊर्जा का ही नहीं, बल्कि तुम्हारी आला का ही समग्र तालमेल बैठ जाता है। इसीलिए जब कभी कोई शिष्य हो जाता है तो सारा संसार सोचता है कि वह पागल है; क्योंकि संसार समझ नहीं सकता कि बात क्या है। क्यों तुम पागल हुए जा रहे हो इस आदमी के पीछे? और तुम उसे समझा भी नहीं सकते, क्योंकि यह समझाया नहीं जा सकता है। शायद तुम चेतन रूप से जान भी न पाये हो कि क्या घट गया, लेकिन किसी पर अचानक तुम्हारी श्रद्धा हो जाती है। अकस्मात कुछ मिल जाता है, एक हो जाता है। यह है रैपर्ट एकात्म्य |
वह एकात्म्य पत्थर के साथ होना कठिन है। क्योंकि जीवित गुरु के साथ भी वह एकात्म्य हो पाना कठिन होता है तो इसे तुम पत्थर के साथ कैसे पा सकते हो? लेकिन यदि ऐसा होता है तो तत्क्षण गुरु भगवान हो जाता है। शिष्य के लिए गुरु हमेशा भगवान होता है वह गुरु और किसी के लिए भगवान न भी हो, लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन इस शिष्य के लिए वह भगवान है और उसके द्वारा भगवता के द्वार खुलते हैं तब तुम चाबी पा लेते हो चाबी है यह आंतरिक