________________ पतंजलि को तुम समझ सकते हो; हेराक्लतु तो एकदम तुम्हारी समझ में नहीं आते हैं। पतंजलि ज्यादा ठोस हैं। उनके साथ तुम पकड़ पा सकते हो। हेराक्लतु एक बादल हैं, तुम उन पर कोई पकड़ नहीं बना सकते। पतंजलि से तुम तर्क-संगतता के कुछ ओर-छोर जुटा सकते हो; वे बुद्धि संगत लगते हैं। तुम हेराक्लतु का या बाशो का क्या करोगे? नहीं, वे एकदम अतार्किक ही हैं। उनके विषय में सोचते हुए, तुम्हारा मन नितांत नपुंसक हो जाता है। जब तुम ऐसी बातें कहते हो, जब तुम तुलनाएं करते हो, निर्णय बनाते हो, तब तुम कुछ कहते हो अपने बारे में ही; उस बारे में जो कि तुम हो। पतंजलि समझे जा सकते हैं; इसमें कोई मुश्किल नहीं। वे बिलकुल तर्कसंगत हैं। उनके पीछे चला जा सकता है; इसमें कोई समस्या नहीं। उनकी सारी विधियां काम में लायी जा सकती हैं क्योंकि वे तुम्हें देते हैं, 'कैसे'। और 'कैसे' को समझना हमेशा आसान होता है। क्या करना है, कैसे करना है? वे तुम्हें विधियां देते है। पूछो बाशो या हेराक्लतु से कि क्या करना है, और वे यही कह देंगे कि करने को कुछ है नहीं। तब तुम हार ही जाते हो। यदि कुछ किया जाना हो तो तुम इसे कर सकते हो, लेकिन यदि कुछ न किया जाना हो तो तुम किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हो। फिर भी तुम बार-बार पूछते चले जाओगे, 'क्या करना है? इसे कैसे करना है? जो आप कह रहे हैं उसे प्राप्त कैसे करना है?' वे परम सत्य की बात कहते हैं बिना उस मार्ग की कहते हए, जो वहां तक ले जाता है। पतंजलि मार्ग की बात कहते है,लक्ष्य की हरगिज नहीं। पतंजलि का संबंध साधनों से है, हेराक्लत् का साध्य से। साध्य रहस्यपूर्ण होता है। वह एक कविता है,वह कोई गणित का हल नहीं है। वह एक रहस्य होता है। पर मार्ग, विधि, कैसे की जानकारी, एक वैज्ञानिक बात है, यह तुम्हें आकर्षित करती है। लेकिन यह तम्हारे बारे में कुछ बता देती है, पतंजलि या हेराक्लत के बारे में नहीं। तम मस्तिष्कोसुख व्यक्ति हो, मनोग्रसित व्यक्ति हो। इसे देखने की कोशिश करो, पतंजलि और हेराक्लतु की तुलना मत करो। सिर्फ बात को समझने की कोशिश करो, कि यह तुम्हारे बारे में कुछ दिखाती है। और यदि तुम्हारे बारे में कुछ दिखाती है, तो तुम कुछ कर सकते हो। मत सोचना कि तुम जानते हो पतंजलि क्या हैं और हेराक्लत् क्या हैं। तुम तो बगीचे के एक साधारण फूल को भी नहीं समझ सकते, और वे तो अस्तित्व में घटित परम खिलावट हैं। जब तक तुम उसी ढंग से न खिलो, तुम समझ नहीं पाओगे। पर तुम तुलना कर सकते हो, तुम निर्णय कर सकते हो, और निर्णय दवारा तम सारी बात ही गंवा दोगे। तो समझने का पहला नियम है-निर्णय कभी न देना। निर्णय कभी मत दो और बुद्ध, महावीर, मोहम्मद, क्राइस्ट, कृष्ण की तुलना हरगिज मत करो। कभी मत करो तुलना। वे तुलना के पार के आयाम में अस्तित्व रखते हैं। और जो कुछ तुम उनके बारे में जानते हो, वस्तुत: