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तीसरी अवस्था का खोजी जो इसमें अपनी समग्रता लगा देता है, वह आनंद प्राप्त करता है। आनंद एक विधायक घटना है। शांति तो निकट होती ही है। जब आनंद निकट आता है, तुम शांत हो जाते हो। यह आनंद का दूरवर्ती प्रभाव होता है जो तुम्हारे निकट पहुंच रहा होता है। यह नदी के पास पहुंचने जैसा है-बहुत दूरी से तुम अनुभव करने लगते हो कि हवा ठंडी हो चली है, हरियाली की गुणवत्ता बदलने लगी है। वृक्ष ज्यादा पल्लवित हैं, ज्यादा हरे है। हवा ठंडी है। अभी तुमने नदी देखी नहीं लेकिन नदी है कहीं निकट। पानी का स्रोत कहीं निकट है। जब जीवन का स्रोत कहीं निकट होता है, तुम शांत हो जाते हो,लेकिन अभी तुमने पाया नहीं है। वह बस निकट ही है। पतंजलि इस व्यक्ति को कहते हैं मध्य-मध्यस्थ व्यक्ति।
__ वह भी ध्येय नहीं है। ध्येय तक पहुंचना हुआ नहीं, जब तक कि तुम मप्र होकर, मस्त होकर नाचने न लगो। यह आदमी नाच नहीं सकता, यह आदमी गा नहीं सकता, क्योंकि गाना शांति भंग करने जैसा दिखाई देगा। नाचना नासमझी की बात लगेगी। गाकर और नाचकर क्या करते हो तुम? यह आदमी केवल मृत मूरत की भांति बैठ सकता है। निस्संदेह शांत है वह लेकिन खिला हुआ नहीं, हरा-भरा नहीं। फूल अभी तक खिले नहीं। परम उतरा नहीं है। फिर है तीसरी अवस्था का व्यक्ति जो नत्य में उतर सकता है: जो पागल दिखाई देगा क्योंकि उसके पास बहत है। वह स्त समा नहीं सकता। और वह स्वयं को रोक नहीं सकता इसलिए वह गायेगा और नाचेगा और डोलेगा और वह बांटेगा। और जहां कहीं फेंक सकता हो वह वहीं फेंकेगा वे बीज, जो अनंत रूप से उस पर बरस रहे होते हैं। यह है तीसरी अवस्था का व्यक्ति।
पतंजलि कहते हैं- सफलता उनके निकटतम होती है जिनके प्रयास तीव्र प्रगाढ़ और सच्चे होते हैं। प्रयास की मात्रा मृदु मध्य और उच्च होने के अनुसार सफलता की संभावना विभिन्न होती
'सफलता उनके निकटतम होती है जिनके प्रयास तीव्र रूप से प्रगाढ़ और सच्चे होते हैं।' तुम्हारी समग्रता की आवश्यकता होती है। ध्यान रखना, सच्चाई वह गुण है जो तब घटता है जब तुम किसी चीज में समग्र रूप से होते हो। लेकिन लोगों की सच्चे होने की, वास्तविक होने की धारणा करीब-करीब हमेशा गलत होती है। गंभीर होना प्रामाणिक होना नहीं है। प्रामाणिकता,सच्चाई, एक वह गुण है जो घटता है, जब तुम किसी चीज में समग्र रूप से होते हो। अपने खिलौने के साथ खेल रहा बच्चा प्रामाणिक होता है। वह समग्र रूप से इसी में होता है। निमग्र! कुछ पीछे नहीं छूटा रहता, कुछ भी रोके हुए नहीं। वह वस्तुत: वहां होता ही नहीं। केवल खेल चलता चला जाता है।