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रखा नहीं है। जब बच्चा मर रहा हो तो तुम फर्नीचर बेच दोगे। जब तुम भूखे होते हो तो तुम मकान भी बेच सकते हो। पहले पहली चीजें और दूसरे नंबर पर दूसरी चीजें-यह है अर्थनीति का अर्थ। और मस्तिष्क अंतिम है। यह तुम्हारा केवल एक प्रतिशत है, और वह भी अतिरिक्त। तुम इसके बिना बने रह सकते हो।
क्या तुम पेट के बिना बने रह सकते हो? क्या तुम हृदय के बिना विद्यमान रह सकते हो? लेकिन तुम मस्तिष्क के बिना बने रह सकते हो। और जब तुम मस्तिष्क पर बहुत ज्यादा ध्यान देते हो, तुम पूरी तरह औंधे होते हो। तो तुम शीर्षासन कर रहे हो; सिर के बल खड़े हो। तुम बिलकुल ही भूल गये कि मस्तिष्क परम आवश्यक नहीं
जब तुम बल तुम्हारा मस्तिष्क खोज-बीन में लगा देते हो, तो यह जिज्ञासा है। तब यह एक विलास है। तुम एक दार्शनिक हो सकते हो, और आरामकुर्सी पर बैठ आराम कर सकते हो और सोच सकते हो। दार्शनिक राजसी फर्नीचर की भांति है। अगर तुम ऐसा खर्च करने में समर्थ हो सकते हो तब खूब करना चिंतन। तो ठीक है, पर यह कोई जीवन-मरण का प्रश्न नहीं होता। इसलिए पतंजलि कहते हैं कि कुतूहल वाला आदमी, एक कुतूहली व्यक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। और जिज्ञास् व्यक्ति,खोज-बीन करने वाला, दार्शनिक हो जायेगा।
फिर है तीसरा व्यक्ति जिसे पतंजलि ममक्षावान व्यक्ति कहते हैं। इस शब्द 'कक्षा' का सीधा अनुवाद करना कठिन है,इसलिए मैं इसकी व्याख्या करूंगा। कक्षा का अर्थ होता है इच्छाविहीन होने की इच्छा; संपूर्ण रूप से मुका होने की आकांक्षा;अस्तित्व-चक्र से बाहर हो जाने की इच्छा; फिर से जन्म न लेने की इच्छा; फिर से न मरने की इच्छा; यह अनुभूति कि लाखों बार उत्पन्न होना पर्याप्त नहीं है; बार-बार मरना और उसी दुष्चक्र में घूमते रहना पर्याप्त नहीं है। मुमुक्षा का अर्थ होता है अस्तित्व-चक्र से ही अंतिम रूप से अलग हो जाना। ऊबकर, परेशान होकर व्यक्ति इसमें से बाहर हो जाना चाहता है। खोज अब जीवन-मरण की समस्या हो जाती है। तुम्हारा सारा अस्तित्व दांव पर लग जाता है। पतंजलि कहते हैं कि केवल मुमुक्षावान व्यक्ति जिसकी मोक्ष की कामना उदित हो चुकी है, धार्मिक व्यक्ति हो सकता है। और इसलिए भी, क्योंकि वह बहुत-बहुत तर्कसंगत विचारक होता है।
जो मुमुक्षा की कोटि से संबंधित होते हैं वे भी तीन प्रकार के व्यक्ति होते हैं। पहले प्रकार के व्यक्ति जो मुमुक्ष से संबंध रखते हैं वे अपनी समग्रता का एक-तिहाई प्रयास में लगाते हैं। तुम्हारे अस्तित्व का एक-तिहाई हिस्सा प्रयास में लगाने से तुम कुछ पा लोगे, लेकिन जो तुम पाओगे वह निषेधात्मक प्राप्ति होगी। तुम तनावपूर्ण नहीं होओगे। इसे बहुत गहराई से समझ लेना है। तुम शांत नहीं होओगे। तुम बेचैन भी नहीं होओगे तनाव गिर जायेंगे। लेकिन तुम शांतिमय, प्रशांत, धैर्यवान नहीं होओगे। उपलब्धि निषेधात्मक होगी। अस्वस्थता मिट जायेगी। तुम क्षुब्धता अनुभव नहीं