________________ इसलिए भारतीय शिक्षा में गुरुओं पर इतना ज्यादा जोर है। वे जानते थे। और जो वे कहते थे, उसका ठीक-ठीक वही अर्थ होता था। क्योंकि कोई इतना ज्यादा जटिल यंत्र नहीं होता जितना कि मानव-मन। कोई कंप्यूटर इतना जटिल नहीं होता है जैसा कि मनुष्य का मन। आदमी अभी तक मन के जैसी कोई चीज विकसित करने लायक नहीं हुआ है। और मैं नहीं समझता कि यह कभी विकसित होने भी वाली है। कौन विकसित करेगा इसे? अगर मानव-मन कोई चीज विकसित कर सके, तो यह हमेशा निम्नतर और कमतर ही होनी चाहिए, उस मन से जो इसे निर्मित करता है। कम से कम एक बात तो निश्चित है कि जो कुछ भी मानव-मन निर्मित करता है, वह निर्मित की हुई चीज मानव-मन का निर्माण नहीं कर सकती। तो मानव-मन सर्वाधिक उच्च बना रहता है, सबसे उत्कृष्ट ढंग की जटिल यंत्ररचना। कुछ मत करो मात्र जिज्ञासा के कारण, या सिर्फ इसीलिए कि दूसरे उसे कर रहे हैं। दीक्षित हो जाओ और फिर उसके साथ आगे बढ़ो, जो मार्ग को ठीक से जानता हो; वरना परिणाम पागलपन हो सकता है। यह पहले घट चुका है, और बिलकुल यही अभी भी घट रहा है बहुत से लोगों को। पतंजलि संयोग में, एक्सिडेंट्स में विश्वास नहीं करते। वे वैज्ञानिक सुव्यवस्था में विश्वास करते हैं। इसलिए वे एक-एक चरण आगे बढ़ते है। और वे इन दो बातों को अपना आधार बना लेते हैं : वैराग्य-इच्छारहितता और अभ्यास-सतत, बोधपूर्ण आंतरिक अभ्यास। अभ्यास साधन है और वैराग्य है साध्य। इच्छाविहीनता है साध्य और सतत, बोधपूर्ण अभ्यास है साधन। किंतु साध्य आरंभ होता है बिलकुल आरंभ से। और अंत छिपा रहता है आरंभ में। वृक्ष छिपा हआ है बीज में, इसलिए आरंभ में ही गर्भित है अंत। इसीलिए पतंजलि कहते हैं कि इच्छारहितता की आरंभ में भी जरूरत होती है। आरंभ के भीतर ही है अंत और अंत के भीतर भी आरंभ होगा। गुरु भी, जब कि वह सिद्ध हो चुका हो, पूर्ण हो चुका हो, फिर भी वह अभ्यास जारी रखता है! यह असंगत लगेगा तुम्हें तो। तुम्हें अभ्यास करना पड़ता है क्योंकि तुम आरंभ पर हो और लक्ष्य उपलब्ध हुआ नहीं है, लेकिन जब लक्ष्य उपलब्ध भी हो जाता है, तो भी अभ्यास जारी रहता है। अब यह सहज स्वाभाविक हो जाता है, पर यह बना रहता है। यह कभी थमता नहीं। यह थम सकता नहीं, क्योंकि अंत और आरंभ दो चीजें नहीं हैं। अगर वृक्ष है बीज में, तो बीज फिर वृक्ष में चला आयेगा। किसी ने बुद्ध से पूछा-उनके शिष्यों में से एक पूर्णकाश्यप, उसने पूछा, 'हम देखते हैं, भत्ते, कि आप अब तक भी एक शुनिश्चित अनुशासन का पालन करते है।'