________________ फोन उठाया और कॉल की। वह बोला, 'हलो! क्या यह नर्क है? क्या तुम्हारे पास वहां बारह विश्वासघाती पत्नियों के लिए कमरा है? और उनमें से एक तो पत्थर की तरह बहरी है!' इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता, चाहे तुम कुछ स्वीकारो या नहीं। तुम्हारा चेहरा, तुम्हारा अस्तित्व ही हर चीज दर्शा देता है। हो सकता है तुम कहो कि तुम दुखी नहीं हो, लेकिन जिस तरह से तुम यह कहते हो, जिस ढंग से तुम व्यवहार करते हो, वह बता देता है कि तुम दुखी हो। तुम धोखा नहीं दे सकते। और इसमें कोई सार नहीं है क्योंकि कोई किसी दूसरे को धोखा नहीं दे सकता। तुम केवल स्वयं को ही धोखा दे सकते हो। ध्यान रखना, यदि तुम दुखी होते हो, तो तुम्ही ने यह सब निर्मित किया है। इसे तुम्हारे हृदय में गहरे उतरने दो कि तुम्हीं ने अपनी व्यथा निर्मित की है क्योंकि यह बात सूत्र बनने वाली है, चाबी। अगर तुमने ही निर्मित की है तुम्हारी व्यथा, तो केवल तुम्हीं उसे मिटा सकते हो। अगर किसी दूसरे ने उसे निर्मित किया है, तब तो तुम असहाय हो। तुमने निर्मित किये हुए होते हैं तुम्हारे दुख तो तुम उन्हें मिटा सकते हो। तुमने उन्हें गलत आदतों, गलत अभिवृत्तियों, आसक्तियों, इच्छाओं दवारा निर्मित किया है। इस ढांचे को गिरा दो! नये सिरे से देखो! तब यह जीवन ही वह सच्चिदानंद है, जो मानवीय चेतना के लिए संभव है। आज इतना ही। प्रवचन 10 - साक्षी और वैराग्य-प्रारंभ भी, अंत भी दिनांक 4 जनवरी, 1974; संध्या। वुडलैण्डस, बंबई। प्रश्न सार: