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मन की वह वृत्ति जो अपने में किसी विषय-वस्तु की अनुपस्थिति पर आधारित होती है निद्रा है।
यही निद्रा की परिभाषा है। मन की चौथी वृत्ति। जब कोई विषय-वस्तु नहीं होता है.. निद्रा के अतिरिक्त मन हमेशा विषय-वस्तु से भरा रहता है। कुछ-न-कुछ वहां होता है। कोई विचार चल रहा होता है, कोई आवेश होता है, कोई आकांक्षा बढ़ रही होती, कोई स्मृति, कोई भावी कल्पना, कोई शब्द, कोई चीज चलती ही रहती है। निरंतर कुछ चलता रहता है। केवल जब तुम सोये होते हो गहरी निद्रा में, तभी अंतर्विषय थम जाते हैं। मन मिट जाता है, और तुम स्वयं में होते हो बिना किसी विषय-वस्तु के।
इसे ध्यान में रख लेना है क्योंकि यही अवस्था समाधि में भी होने वाली है, केवल एक अंतर के साथ-तुम जागरूक रहोगे। नींद में तुम जागरूक नहीं होते, मन पूरी तरह गैर-अस्तित्व में चला जाता है। तुम अकेले हो जाते हो, अकेले छोड़ दिये जाते हो। कोई विचार नहीं होते; केवल तुम्हारा अस्तित्व होता है। लेकिन तुम जागरूक नहीं हो। तुम्हें विचलित करने के लिए मन वहां नहीं है, लेकिन तुम जागरूक नहीं हो।
वरना निद्रा संबोधि बन सकती है। विषय-वस्तु रहित चेतना वहां है, लेकिन वह चेतना जागरूक नहीं है। वह छिपी हुई है बीज मात्र में। समाधि में, वह बीज प्रस्कुटित हो जाता है, चेतना जागरूक हो जाती है। और यदि चेतना जागरूक हो और कोई अंतर्विषय न रहे-यही तो लक्ष्य है। निद्रा हो और जागरूकता हो, यही है लक्ष्य।
यह है मन की चौथी वृत्ति-निद्रा। लेकिन वह लक्ष्य-जागरूकता के साथ वाली घटित हुई निद्रा, मन की वत्ति नहीं है। वह मन के बाहर है; जागरूकता मन के परे है। यदि तम एक साथ निद्रा
और जागरूकता को जोड़ सको, तो तम संबोधि पा जाओगे। लेकिन यह कठिन है क्योंकि दिन में जब हम जागे हुए होते हैं तब भी हम जाग्रत नहीं होते। यह शब्द ही भ्रांति-जनक है। जब हम सोये हों, तो हम जागे हुए कैसे हो सकते हैं? जब हम जागे भी होते हैं, हम जागे हुए नहीं होते।
तुम्हें होशपूर्ण होना है, जब तुम जाग्रत होते हो- अधिक से अधिक, पूरी सघनता से जाग्रत। और फिर तुम्हें प्रयत्न करना होता है सपनों में जागते रहने का। सपने देखते समय तम्हें जागरूक रहना पड़ता है। जब तुम जाग्रत अवस्था के साथ सफलता पा जाते हो और फिर स्वप्रावस्था के साथ, तब तुम तीसरी अवस्था के साथ भी सफलता पाओगे, जो है निद्रा की।
पहले तो जागरूक होने की कोशिश करो। जिस समय सड़क पर चलते हो, स्वचालित ढंग से, यंत्रवत ही मत चलते चले जाना। हर क्षण के प्रति, हर सांस जो तुम लेते हो उसके प्रति सजग हो जाना। श्वास छोड़ते हुए, श्वास लेते हुए, जागरूक रहो। आख की हर गति जो तुम बनाते हो, उसके