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लेकिन पतंजलि जैसा आदमी ऐसी बात के लिए हरगिज कोशिश न करेगा। केवल निकृष्ट दिमाग हमेशा जोड़ने-बढ़ाने की कोशिश करते हैं। निकृष्ट दिमाग यह कोशिश कर सकते हैं, लेकिन कोई चीज अपने बढ़े हए स्वप्न में केवल तभी निरंतर बनी रहती है जब वह भीड़ की चीज बन जाती है। भीड़ जागरूक नहीं है। वह जागरूक हो नहीं सकती। केवल यीट्स जागरूक हुआ कि अनुवाद में कुछ गलत था। सभा में बहुत-से और लोग मौजूद थे, लेकिन कोई और जागरूक न था।
पतंजलि का योग एक गोपनीय पंथ है, एक गढ़ परंपरा। हालांकि पुस्तक लिखी भी गयी, पुस्तक स्वप्न में उसे विश्वसनीय नहीं माना गया। और अब भी कुछ लोग जीवित हैं जिन्हें पतंजलि के सूत्र सीधे अपने गुरु से मिले हैं पुस्तक से नहीं। यह मौखिक परंपरा अब तक जीवित बनी रही है। और यह बनी रहेगी, क्योंकि पुस्तकें विश्वसनीय नहीं होतीं। कई बार पुस्तकें गुम हो सकती हैं, बहुत-सी चीजें पुस्तकों के साथ गलत हो सकती हैं। अत: एक गढ परंपरा अब भी अस्तित्ववान है.। उस परंपरा को कायम रखा गया है। और जो सूत्रों को जानते हैं अपने गुरु के वचनों द्वारा, वे निरंतर स्वप्न से जांचते रहते हैं कि क्या पुस्तक के स्वप्न में कुछ गलत हुआ है या कि कुछ बदल दिया गया है।
ऐसा दूसरे शास्त्रों के साथ नहीं बना रहा है। बाइबिल में बहुत-सी बातें बाद में जोडी हुई है। यदि जीसस वापस आ जाते,तो वे नहीं समझ पाते, क्या हुआ। किस तरह कुछ खास चीजें बाइबिल में चली आयी हैं? जीसस की मृत्यु के दो सौ वर्ष उपरान्त पहली बार बाइबिल लिखी गयी; इससे पहले नहीं। और उन दो सौ वर्षों में बहत सारी चीजें गायब हो गयी थीं। जो शिष्य जीसस के पास रहे उनके पास भी अलग-अलग कहानियां थीं बताने को।
बुद्ध नहीं रहे। उनकी मृत्यु के पांच सौ वर्ष पच्श्रात उनके वचन लिपिबद्ध किये गये थे। कई बौद्ध धाराएं हैं बहुत-से शास्त्र हैं, और कोई नहीं कह सकता कि कौन-सा सत्य है और कौन-सा असत्य है। लेकिन बुद्ध समूह से बातचीत कर रहे थे,साधारण सामान्य लोगों से। इसलिए वे पतंजलि की तरह सघन सूत्रवत नहीं हैं। वे चीजों को विस्तार दे रहे थे व्योरेवार स्वप्न में। उन ब्योरों में, बहुत सारी चीजें जोड़ी जा सकती थी, बहुत हटायी जा सकती थीं और कोई जानेगा नहीं कि कुछ बदल दिया गया है।
लेकिन पतंजलि भीड़ से नहीं कह रहे। वे कुछ चुनिंदा लोगों से कह रहे थे, एक समूह से, बहुत थोड़े-से लोगों के एक समूह से-जैसा कि गुरजिएफ के साथ हुआ। गुरजिएफ भीड़ के सम्मुख कभी कुछ नहीं बोले। केवल उनके शिष्यों का एक बहुत चुना हुआ वर्ग उसे सुन पाता था, और वे भी सुनते बहुत शर्तों के साथ। कोई सभा पहले से घोषित नहीं की जाती थी। अगर किसी रात गुरजिएफ साढ़े आठ बजे बोलने जा रहा होता तो आठ बजे के लगभग तुम्हें सूचना मिलती कि गुरजिएफं बोलने जा रहा है कहीं। और तुम्हें फौरन वहां पहुंचना होता क्योंकि साढ़े आठ बजे दवार बंद हो जाता।