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कोई अभ्यास, कोई सचेतन प्रयास तुम्हारे पुराने ढांचे को बदल सकता है। लेकिन यह कोई ऐसा कार्य नहीं है जो तुरंत किया जा सकता हो। इसमें समय लगेगा क्योंकि तुमने अपनी आदतो का ढांचा बहुत से जन्मों से बनाया है। यदि तुम एक जीवन में भी इसे बदल सको, तो यह बहुत जल्दी
है।
मेरे संन्यासी मेरे पास आते और वे कहते हैं, 'कब घटित होगा यह?' मैं कहता हं 'जल्दी।' तब वे कहते हैं, आपके इस जल्दी का क्या अर्थ है? क्योंकि वर्षों से आप हमें कहते आ रहे हैं 'जल्दी ।
अगर यह एक जीवन में भी घटित हो जाता है, यह जल्दी ही है। जब भी यह घटित होता है, उसे समय से पहले घटित हुआ समझो। क्योंकि तुमने अपना ढांचा बहुत जन्मों से निर्मित किया है। उसे नष्ट करना पड़ता है। अत: अगर यह बात कभी कई जीवन भी ले ले
ज्यादा देर नहीं हुई होती है।
मन की समाप्ति सतत आंतरिक अभ्यास और वैराग्य दवारा लायी जा सकती है। इन दो में से अभ्यास आंतरिक अभ्यास स्वयं में दृढता से प्रतिष्ठित होने का प्रयास है।
अभ्यास का सार है स्वयं में केंद्रित होना। जो कुछ भी घटित हो, तुम्हें तुरंत नहीं प्रभावित होना चाहिए। पहले तुम्हें स्वयं में केंद्रित हो जाना चाहिए और फिर उस केंद्रस्थ दशा से आस-पास देखना चाहिए और फिर निर्णय लेना चाहिए।
कोई तुम्हारा अपमान कर देता है और तुम उस अपमान द्वारा धकेल दिये जाते हो। अपने केंद्र का संपर्क किये बगैर तुम आगे बढ़ गये हो। एक क्षण के लिए भी केंद्र तक वापस गये बगैर फिर आगे बढ़ रहे हो, तुम आगे सरक चुके हो।
अभ्यास का अर्थ है आंतरिक प्रयास। सचेतन प्रयास का अर्थ है, 'इससे पहले कि मैं बाहर बढू मुझे भीतर बढना चाहिए। पहले मुझे अपने केंद्र से संपर्क स्थापित करना चाहिए। वहां केंद्रित होकर मैं स्थिति पर दृष्टि डालूंगा और फिर निर्णय लूंगा।'और यह इतनी बड़ी, इतनी रूपांतरकारी घटना है कि एक बार तुम भीतर केंद्रित हो जाते हो तो सारी बात ही अलग दिखाई पड़ने लगती है, परिप्रेक्ष्य बदल चुका होता है। तब अपमान शायद अपमान जैसा न लगे। हो सकता है वह आदमी तो बस मूर्ख लगे। या अगर तुम वास्तव में केंद्रित हो गये हो, तो तुम शायद जान जाओ कि वह ठीक है; कि यह कोई अपमान नहीं है। वह तुम्हारे बारे में कुछ गलत नहीं बोला है।