________________ कोई गंदा मजाक करता तो वे न हंसते। तीस दिन तक वे भूखे रहे। तीस दिन बाद तो सारा समूह कामवासनाहीन था! उनके मन में या शरीरों में कोई कामवासना न थी। तब फिर उन्हें भोजन दिया गया। पहले दिन ही वे फिर उसी पुराने ढंग के हो गये थे। अगले दिन तक वे कामवासना में ज्यादा आकृष्ट थे और तीसरे दिन तक तीस दिनों की सारी भुखमरी पूरी तरह गायब हो गयी थी। अब वे कामवासना में केवल आकष्ट ही न थे, वे पएर मस्त होकर आकृष्ट थे-जैसे कि अंतराल ने आकर्षण के बढ़ने में मदद कर दी थी। कुछ सप्ताह के लिए वे सनकी ढंग से यौनपूर्ण थे। केवल लड़कियों के बारे में ही सोचते रहे और दूसरा कुछ नहीं। जब भोजन था शरीर में,लड़कियां फिर से महत्वपूर्ण हो गयी थीं। किंतु ऐसा सारे संसार में बहुत देशों में किया जाता रहा है। बहुत धर्मों ने उपवास करने के अभ्यास का पालन किया है। और फिर लोग समझने लगते है कि वे कामवासना के पार चले गये है। तुम कामवासना के पार जा सकते हो, लेकिन उपवास नहीं है उसका उपाय। यह तो एक चालाकी है। और यह चालाकी हर तरह से प्रयोग की जा सकती है। अगर तुम उपवास करते हो, तो तुम कम भूखे होओगे। और अगर तुम उपवास करने की आदत बना लेते हो, तब बहुत सारी चीजें तुम्हारी जिंदगी से गिर ही जायेंगी क्योंकि आधार हरि गया है। भोजन होता है आधार। जब तुम्हारे पास अधिक ऊर्जा होती है, तुम अधिक आयामों की ओर सरकते हो। जब तुम ऊर्जा के अतिरेक प्रवाह से भरे हुए होते हो, तो तुम्हारी उमड़ पड़ रही ऊर्जा तुम्हें बहुत-सी इच्छाओं में ले जाती है। इच्छाएं कुछ नहीं है सिवाय ऊर्जा की अभिव्यक्ति के। तो दो तरीके संभव हैं। एक तो यह कि तुम्हारी इच्छाएं बदल जाती हैं लेकिन ऊर्जा बनी रहती है। और दूसरा है कि ऊर्जा मार डाली जाती है लेकिन इच्छाएं बनी रहती हैं। ऊर्जा बड़ी आसानी से हटायी जा सकती है। सरलता से तुम्हारी शल्य-क्रिया की जा सकती है जननेंद्रिय की, और तब कामवासना मिट जाती है। कुछ हार्मोन्स तुम्हारे शरीर से निकाल दिये जा सकते हैं। यही है जो उपवास कर रहा है। कुछ हार्मोन्स मिट जाते है और तब तुम कामविहीन हो सकते हो। लेकिन यह नहीं है पतंजलि का ध्येय। पतंजलि कहते हैं कि ऊर्जा बनी रहनी चाहिए और इच्छाएं मिट जानी चाहिए। केवल जब इच्छाएं मिट जाती हैं और तुम ऊर्जा से भरे हुए होते हो, तब तुम उस आनंदमयी अवस्था को उपलब्ध हो सकते हो,जिसके लिए योग प्रयत्न करता है। एक मरदासा व्यक्ति दिव्यता तक नहीं पहुंच सकता है। दिव्यता केवल उमड़ती हुई ऊर्जा द्वारा पायी जा सकती है- भरपूर ऊर्जा, एक महासागर ऊर्जा का। तो यह दूसरी बात है सतत याद रखने की-ऊर्जा नष्ट मत करो, इच्छाएं नष्ट करो। यह कठिन होगा। यह दुस्साध्य होने वाली है। क्योंकि इसमें तुम्हारे अस्तित्व के समग्र रूपांतरण की