________________ जब इच्छाओं पर पहली बार ध्यान दिया जाता है और उन्हें जाना जाता है तो चेष्टाएं उलन्न होती हैं सूक्ष्म चेष्टा। पहला कदम भी एक सूक्ष्म चेष्टा है। तुम जाग्रत होने की कोशिश करने लगते हो कि तुम्हारी प्रसन्नता कहा से आ रही है। तुम्हें कुछ करना पड़ता है, और वह करना ही अहंकार निर्मित कर देगा। इसीलिए पतंजलि कहते हैं कि यह केवल प्रारंभ है, और तुम्हें ध्यान रखना चाहिए कि यह अंत नहीं है। अंत में, न केवल इच्छाएं मिट चुकी होती हैं; तुम भी मिट जाते हो। केवल आंतरिक अस्तित्व अपने प्रवाह में बना रह जाता है। यह सहज प्रवाह परम आनंद है क्योंकि इससे कोई दुख संभव नहीं होता है। दुख अपेक्षाओं द्वारा आता है, मांग द्वारा। अब कोई नहीं होता अपेक्षा करने को या मांग करने को, अत: जो कुछ घटित होता है, प्रिय है। जो कुछ भी घटता है, एक आशीष होता है। तुम इसकी किसी दूसरी चीज से तुलना नहीं कर सकते। बस, यह है और चूंकि अतीत के साथ या भविष्य के साथ तुलना नहीं करते हो, क्योंकि तुलना करने को कोई है नहीं, तुम्हें कोई चीज दुख की भांति, पीड़ा की भांति नहीं लग सकती। अगर इस दशा में पीड़ा घटित होती भी है, तो वह कष्टकर नहीं होगी। इसे समझने की कोशिश करना। यह कठिन है। जीसस को सूली पर चढ़ा दिया गया था, अत: ईसाइयों ने जीसस को बहुत उदास चित्रित किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि वे कभी हंसे नहीं। और उनके चर्चों में हर कहीं जीसस की उदास प्रतिमाएं ही हैं। यह मानवोचित है। हम इसे समझ सकते हैं। एक व्यक्ति, जिसे सूली पर चढ़ा दिया जाता है उसे उदास ही होना चाहिए। वह आंतरिक पीड़ा में होगा, वह दुख पा ही रहा होगा। __ इसलिए ईसाई कहे चले जाते हैं कि जीसस ने हमारे पापों के कारण दुख सहा; कि उन्होंने प्राणदंड पाया उनके लिए। यह बिलकुल गलत है! अगर तुम पतंजलि से या मुझसे पूछो तो यह बिलकुल गलत है। जीसस दुख नहीं भोग सकते। जीसस के लिए असंभव है दुख भोगना। और अगर उन्होंने दुख उठाया, फिर तो तुम्हारे और उनके बीच कोई भेद ही नहीं है। __ पीड़ा वहां है, लेकिन वे दुख नहीं पा सकते। यह रहस्यपूर्ण लग सकता है, पर ऐसा है नहीं। यह सीधा-सरल है। जितना भर हम बाहर से देख सकते हैं, पीड़ा तो वहां है। उन्हें सूली पर चढ़ाया जा रहा है, अपमानित किया जा रहा है, उनका शरीर नष्ट किया जा रहा है। दर्द है वहां, लेकिन जीसस को पीड़ा नहीं हो सकती। उस क्षण जब जीसस को सूली पर चढ़ाया जा रहा है, वे कोई इच्छा नहीं कर सकते। उनकी कोई मांग नहीं है। वे नहीं कह सकते, 'यह गलत है। यह ऐसा नहीं होना चाहिए। मुझे तो ताज पहनाया जाना चाहिए और मुझे सूली पर चढ़ाया जा रहा है।' अगर उनके मन में यह हो कि 'मुझे तो ताज पहनाया जाना चाहिए, और मुझे सूली पर चढ़ाया जा रहा है, तब दुख होगा। अगर उनके मन में कोई भविष्य नहीं है, कोई विचार नहीं है कि उन्हें ताज पहनाया जाना चाहिए, भविष्य के लिए आशा नहीं है, पहुंचने को निधर्मरत लक्ष्य नहीं