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नहीं, यह संभव नहीं था क्योंकि एक समूह की कोई आत्मा नहीं होती। एक समूह का
कोई व्यक्तित्व नहीं होता। केवल एक व्यक्ति ग्रहणशील हो सकता है, पा सकता है। क्योंकि केवल एक व्यक्ति का हृदय होता है। समूह व्यक्ति नहीं होता है।
तुम सब यहां हो और मैं बोल रहा हूं लेकिन मैं समूह से नहीं बोल रहा हूं क्योंकि समूह के साथ कोई सवांद नहीं हो सकता। मैं यहां प्रत्येक व्यक्ति से बात कर रहा हूं। तुम एक समूह में एकत्रित हुए हो, लेकिन तुम मुझे समूह की तरह नहीं सुन रहे। तुम मुझे व्यक्तियों की तरह सुन रहे हो । वास्तव में समूह अस्तित्व नहीं रखता। केवल व्यक्ति रखते हैं। 'समूह' एक शब्द मात्र है। उसकी कोई वास्तविकता नहीं, कोई सत्व नहीं वह एक जोड़ का नाम भर है।
तुम समूह को प्रेम नहीं कर सकते; तुम देश को प्रेम नहीं कर सकते, तुम मानवता को प्रेम नहीं कर सकते।
लेकिन ऐसे व्यक्ति हैं जो दावा करते है कि वे मानवता से प्रेम करते है। वे स्वयं को धोखा दे रहे हैं क्योंकि कहीं मानवता जैसी कोई चीज नहीं है। केवल मानवप्राणी हैं। जाओ और खोजो, तुम कहीं मानवता नहीं खोज पाओगे।
वास्तव में, जो व्यक्ति दावा करते है कि वे मानवता से प्रेम करते हैं, वे व्यक्ति वे हैं जो व्यक्तियों को प्रेम नहीं कर सकते वे व्यक्तियों से प्रेम करने में असमर्थ है। वे कहते है, वे मानवता को, देश को, विश्व को प्रेम करते हैं। हो सकता है वे ईश्वर को भी प्रेम करते हों, लेकिन वे व्यक्ति को प्रेम नहीं कर सकते क्योंकि व्यक्ति को प्रेम करना दुष्कर होता है, कठिन होता है। यह एक संघर्ष होता है। तुम्हें स्वयं को बदलना पड़ता है। मानवता से प्रेम करना कोई समस्या नहीं है, क्योंकि कोई मानवता है नहीं। तुम अकेले हो। सत्य, सौन्दर्य, प्रेम या कोई चीज जो महत्वपूर्ण है, हमेशा व्यक्ति से संबंध रखती है, इसलिए केवल व्यक्ति ग्रहणशील हो सकते हैं।
दस हजार संन्यासी उपस्थित थे जब बुद्ध ने अपना सारा अस्तित्व महाकाश्यप में उंडेल दिया। समूह उसे ग्रहण करने के अयोग्य था। कोई समूह योग्य नहीं हो सकता क्योंकि चेतना वैयक्तिक है, जागरूकता वैयक्तिक है। महाकाश्यप उस शिखर तक उठ गये थे, जहां वे बुद्ध को ग्रहण कर सकते थे। दूसरे व्यक्ति भी उस शिखर तक पहुंच सकते हैं, लेकिन समूह नहीं पहुंच
सकता।
बुनियादी तौर से धर्म व्यक्तिमूलक बना रहता है; अन्यथा हो नहीं सकता। साम्यवाद और धर्म की बुनियादी लड़ाइयों में से यह एक लड़ाई है साम्यवाद समूहों, समाज, सामूहिकताओं की भाषा में सोचता है, और धर्म व्यक्ति की भाषा में सोचता है। साम्यवाद सोचता है कि समाज संपूर्ण रूप से