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इस मन को योग कैसे सिखाया जा सकता है? इस मन को योग सिखाया जा सकता है क्योंकि यह भविष्योसुखता कहीं नहीं ले जा रही है। यह भविष्य की ओर अभिमुख होते जाना आधुनिक मन के लिए सतत दुख का निर्माण कर रहा है। हमने नरक का निर्माण कर लिया है। और हमने इसे बहुत निर्मित कर लिया है। अब मनुष्य को या तो इस पृथ्वी से मिट जाना होगा,या उसे स्वयं को रूपांतरित करना होगा। या तो मनुष्यता को पूर्णतया मरना होगा क्योंकि यह नरक अब और जारी नहीं रखा जा सकता-या हमें अंतस क्रांति से गुजरना होगा।
___ इसलिए, योग बहुत अर्थपूर्ण और महत्वपूर्ण बन सकता है आधुनिक मन के लिए, क्योंकि योग बचा सकता है। यह तुम्हें सिखा सकता है फिर से यहीं और अभी कैसे होओ, अतीत को किस तरह भूलो, भविष्य को कैसे भूलो। और किस तरह वर्तमान क्षण में बने रहो इतनी प्रगाढ़ता के साथ कि यह क्षण कालातीत बन जाता है; यही क्षण शाश्वतता बन जाता है।
पतंजलि अधिक से अधिक अर्थपूर्ण बन सकते हैं। जैसे ही यह शताब्दी अपनी समाप्ति तक पहुंची, मानवीय रूपांतरणविषयक विधियां ज्यादा और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जायेंगी। वे अभी ही ऐसी हो गयी हैं सारे संसार में। चाहे तुम उन्हें योग या झेन कहते हो, या चाहे तुम उन्हें सूफी विधियां कहते हो, या तुम उन्हें तंत्र विधियां कहते हो। बहुत-बहुत तरीकों से सारी पुरानी परंपरागत शिक्षाएं प्रकट हो रही हैं। कोई गहरी आवश्यकता है। और हर जगह संसार के हर भाग में, लोग यह ढूंढने में संलग्न हो गये हैं कि ऐसे स्वर्गिक सुख के साथ, ऐसे आनंद के साथ मानवता अतीत में किस तरह विदयमान थी। ऐसी गरीब स्थितियों के साथ, उतने समृद्ध व्यक्ति अतीत काल में कैसे अस्तित्व रखते थे? और हम क्यों इतनी समृद्ध अवस्था होते हुए इतने दीन-हीन हैं?
___यह विरोधाभास है, आधुनिक विरोधाभास। पहली बार हमने समृद्ध वैज्ञानिक समाज निर्मित किये हैं, और वे सर्वाधिक कुरूप हैं, सबसे अधिक अप्रसन्न। अतीत में कोई वैज्ञानिक टैक्नालाजी नहीं थी, चीजों की कोई बहुतायत नहीं, दौलतमंदी नहीं,विशेष कुछ सुविधा नहीं, लेकिन मानवता इतने गहरे, शांतिपूर्ण वातावरण में बनी रही थी-प्रसन्न, अनुगृहीत। क्या घट गया है?हम अधिक सुखी हो सकते हैं, लेकिन हमने अस्तित्व के साथ संपर्क खो दिया है।
और वह अस्तित्व अभी और यहीं है। और बेचैन मन उसके संपर्क में नहीं हो सकता। बेचैनी मन की ज्वरग्रस्त, पागल अवस्था है। तुम भागते चले जाते हो। अगर लक्ष्य आ भी जाता है, तो भी तुम स्थिर नहीं खड़े हो सकते क्योंकि भागना एक तरह की आदत बन गया है। अगर तुम लक्ष्य तक पहुंच भी जाते हो, तो तुम उसे खो दोगे। तुम उसके बाहर-बाहर ही निकल जाओगे। क्योंकि तुम ठहर नहीं सकते। यदि तुम ठहर सकते हो, तो लक्ष्य को कहीं खोजना नहीं है।
एक झेन गुरु हुईहाइ ने कहा है, 'खोजो, और तुम खो दोगे। खोजो मत, और तुम उसे तुरंत पा सकते हो। ठहरो, और वह यहीं है। भागो, और वह कहीं नहीं है।'