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स्वयं की निंदा करना, स्वयं के प्रति अपराधी होना, तुम्हारे स्वयं के बहुत से हिस्सों का त्याग करना। यह तुम्हें अपंग कर देता है। और विकलांग व्यक्ति लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता। और हम सभी अपंग हैं।
मोह दुख है, लेकिन बिलकुल शुरू से ही बच्चे को मोह की बात सिखा दी जाती है। मां अपने बच्चे से कहेगी, 'मुझे प्रेम करो, मैं तुम्हारी मां हूं।' और पिता कहेंगे, 'मुझे प्रेम करो, मैं तुम्हारा पिता हं।' जैसे कि कोई अपने आप ही प्रिय बन जाता हो,बस पिता या मां होने दवारा ही।
__ केवल मां होना बहुत अर्थ नहीं रखता है या केवल पिता होना बहुत महत्व नहीं रखता। पिता होना एक बड़े अनुशासन में से गुजरना है। प्रीतिकर होना पड़ता है। और मां होना बच्चे पैदा करना मात्र नहीं है। मां होने का अर्थ है एक बड़ा प्रशिक्षण बड़ा आंतरिक अनुशासन। स्वयं को प्रीतिकर होना पड़ता है।
यदि मां प्रीतिकर होती है, तो बच्चा बिना किसी मोह के प्रेम करेगा। जब कभी वह किसी ऐसे को पायेगा जो प्यारा है,वह प्रेम करेगा। लेकिन माताएं प्रीतिकर नहीं होती, पिता प्रीतिकर नहीं होते। उन्होंने कभी उस शैली में सोचा नहीं है कि प्रेम एक आंतरिक गुण है। तुम्हें उसे निर्मित करना पड़ता है। तुम्हें वह हो जाना होता है।
तुम्हें विकसित होना होता है, केवल तभी तुम दूसरों में प्रेम उत्पन्न कर सकते हो। प्रेम का दावा नहीं किया जा सकता। और यदि तुम इसका दावा करते हो, तो वह मोह बन सकता है, लेकिन प्रेम नहीं। तब बच्चा मां को प्रेम करेगा तो सिर्फ इसलिए क्योंकि वह उसकी मां है। मां या पिता ध्येय बन जाते हैं। लेकिन ये संबंध हैं, प्रेम नहीं। तब बच्चा परिवार के मोह में पड़ जाता है। और परिवार एक भंजक शक्ति है क्योंकि यह तुम्हें पड़ोस के परिवार से अलग कर देती है। तुम्हारा पड़ोसी परिवार प्रीतिकर नहीं लगता क्योंकि तुम उससे संबंध नहीं रखते। तब तुम अपनी बिरादरी की, अपने देश की भाषा में सोचते हो, और पड़ोसी देश को शत्रु की तरह समझते हो।
तुम सारी मानवता को प्रेम नहीं कर सकते। और तुम्हारा परिवार इसका मूल कारण है। परिवार ने नहीं सिखाया तुम्हें प्यारा व्यक्ति होना, एक प्रेमपूर्ण व्यक्ति होना। इसने कुछ निश्चित संबंध तुम पर जबरदस्ती लाद दिये हैं। मोह एक संबंध है,और प्रेम-प्रेम मन की एक अवस्था है। लेकिन तुम्हारे पिता तुम्हें नहीं कहेंगे, प्रेममय बनो क्योंकि अगर तम प्रेममय हो तो तम किसी के प्रति प्रेममय हो सकते हो। हो सकता है कई बार पड़ोसी तुम्हारे पिता से ज्यादा प्रिय हो, लेकिन पिता यह स्वीकार नहीं कर सकता कि कोई उससे अधिक प्रिय हो सकता है। क्योंकि वह तुम्हारा पिता है। इसलिए संबंध सिखाने पड़ते हैं, प्रेम नहीं।
यह मेरा देश है। इसलिए मुझे इसे प्रेम करना पड़ता है। यदि प्रेम मात्र सिखाया जाता है, तो मैं किसी भी देश को प्रेम कर सकता हूं। लेकिन राजनेता इसके विरुद्ध होंगे क्योंकि मैं यदि किसी