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प्रयास द्वारा अपनी अंतर्दृष्टि द्वारा अपनी तपशचर्या द्वारा केवल तभी उत्तर आ सकता है और तब यह सार्थकता बन सकता है तुम्हारी परिपूर्णता इसी के द्वारा आती है।
तीसरा प्रश्न:
अंततः बुद्ध ने महाकाश्यप को वह दिया जिसे वे शब्दों द्वारा किसी दूसरे को न दे सके। यह बोध कौन-सी कोटि में आता था - प्रत्यक्ष, आनुमानिक या बुद्ध पुरुषों के वचन? वह संदेश क्या था?
पहले
तुम पूछते हो, वह संदेश क्या था! यदि बुद्ध उसे शब्दों द्वारा नहीं बतला सकते
थे, तो मैं भी उसे शब्दों द्वारा नहीं बतला सकता। यह संभव नहीं है।
मैं तुम्हें एक किस्सा बताता हूं। एक शिष्य मुल्ला नसरुद्दीन के पास पहुंचा। वह मुल्ला से बोला, 'मैंने सुना है कि आपके पास छिपा हुआ रहस्य है, परम रहस्य। वह चाबी जिसके द्वारा सारे रहस्य द्वार खुल जाते है। नसरुद्दीन बोला, 'हां, मेरे पास वह है उसमें क्या तुम उसके बारे में क्यों पूछ रहे हो?' वह आदमी मुल्ला के पैरों पर गिर पड़ा और बोला, 'मैं आपकी ही तलाश में रहा हूं गुरुदेव! अगर आपके पास चाबी और रहस्य है, तो मुझे बता दें।'
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नसरुद्दीन बोला,' अगर यह ऐसा है रहस्य है, तो तुम्हें समझ लेना चाहिए कि इसे इतनी आसानी से नहीं बताया जा सकता। तुम्हें प्रतीक्षा करनी होगी।' उस शिष्य ने पूछा, 'कितनी देर !' नसरुद्दीन बोला, 'वह भी निश्चित नहीं है। यह तुम्हारे धैर्य कर निर्भर करता है-तीन साल या तीस साल। शिष्य ने प्रतीक्षा की तीन साल बाद उसने फिर पूछा। नसरुद्दीन बोला, अगर तुम फिर पूछते ही हो, तो इसमें तीस साल लगेंगे। बस, प्रतीक्षा करो। यह कोई साधारण बात नहीं है। यह परम रहस्य है।'
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तीस साल गुजर गये और वह शिष्य कहने लगा, 'गुरुदेव अब तो मेरी सारी जिंदगी बेकार हो गयी है। मेरे पास कुछ नहीं है। अब मुझे वह रहस्य दें। नसरुद्दीन बोला, 'एक शर्त है. तुम्हें मुझसे वायदा करना होगा कि तुम्हें भी इसे रहस्य की तरह रखना होगा, तुम इसे किसी से कहोगे नहीं। ' वह आदमी बोला, 'मैं आपको वचन देता हूं कि मेरे मरने तक यह रहस्य ही बना रहेगा। मैं इसकी चर्चा किसी से न करूंगा।