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उठायेगा। तर्क भरा मन कहेगा, 'कोई अंश संपूर्ण के बराबर कैसे हो सकता है? अंश तो संपूर्ण से कम होगा। वह बराबर नहीं हो सकता।
ऑस्स्की लिखता है, विश्व की सबसे अच्छी पुस्तकों में से एक- 'तर्सियम आगेनम' में, कि कोई अंश केवल बराबर ही नहीं हो सकता संपूर्ण के, वह तो संपूर्ण से भी अधिक विराट हो सकता है। लेकिन ऑस्स्की इसे उच्चतर गणित कहता है। उस गणित का संबंध उपनिषद से है। ईशावास्य उपनिषद में कहा गया है, 'तुम पूर्ण में से पूर्ण निकाल सकते हो और तब भी पूर्ण पीछे बना रहता है। तुम पूर्ण में पूर्ण डाल सकते हो और तब भी पूर्ण बना रहता है।'
यह असंगत है। यदि तुम इसे बेतुका कहना चाहो, तो तुम कह सकते हो इसे बेतुका, लेकिन वस्तुत: यह है उच्चतर गणित, जहां सीमाएं खो जाती हैं और बूंद समुद्र बन जाती है। और समुद्र कुछ नहीं है सिवा एक बूंद के। तर्क प्रश्न उठाता है। वह उन्हें उठाये ही जाता है। यही तर्कयुक्त मन का स्वभाव है। और यदि तुम उन प्रश्नों के पीछे चलते जाते हो, तो तुम अनंत तक बढ़ते जा सकते हो। मन को एक ओर रख दो-उसका तर्क, उसके विवेचन- और कुछ क्षणों के लिए बगैर विचार के रहने का प्रयत्न करो। यदि तुम निर्विचार की वह अवस्था एक क्षण को भी पा सको, तो तुम जान जाओगे कि अंश संपूर्ण के बराबर है,क्योंकि अचानक तुम देखोगे कि सारी सीमाएं विलीन हो गयी हैं। वे केवल स्वप्न-सीमाएं थीं। सारे भेद समाप्त हो गये हैं, और तुम और वह पूर्ण एक हो चुके होओगे।
यह एक अनुभव हो सकता है। यह तर्कपूर्ण अनुमान नहीं हो सकता। लेकिन जब कहता हूं पतंजलि अपने निष्कर्षों में तर्कयुक्त हैं, मेरा मतलब क्या होता है? कोई तर्कयुक्त नहीं हो सकता जहां तक कि आंतरिक, आध्यात्यिक परम अनुभव का संबंध होता है। लेकिन मार्ग पर तुम वैसे हो सकते हो। जहां तक कि योग के परम परिणाम का संबंध है, पतंजलि भी तर्कयुक्त नहीं हो सकते, कोई भी नहीं हो सकता। लेकिन उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए तुम्हें तर्कपूर्ण मार्ग अपनाना होता है।
इस दृष्टि से पतंजलि तर्कसंगत, बुदधिपरक, गणितीय और वैज्ञानिक हैं। वे किसी विश्वास की मांग नहीं करते। वे केवल परीक्षण करने वाले साहस, आगे बढ़ने के साहस, अज्ञात में छलांग लगाने के साहस के लिए कहते हैं। वे नहीं कहते, 'विश्वास करो, और फिर तुम अनुभव करोगे।' वे कहते हैं,' अनुभव लो, और फिर तुम विश्वास करोगे।'
और उन्होंने एक ढांचे का निर्माण किया है कि एक-एक कदम कैसे आगे बढ़ा जाये। उनका मार्ग अव्यवस्थित नहीं है, वह किसी भूलभुलैया की तरह नहीं है। वह राजपथ की तरह है। हर चीज स्पष्ट है। और वे सबसे छोटा संभव रास्ता देते हैं। लेकिन तुम्हें पूरे व्योरेवार ढंग से इस पर चलना पड़ता है, वरना तुम मार्ग के बाहर हो कहीं बीहड़ वन में चलने लगते हो।