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कोई निश्चित श्वसन-लय है, उसका मतलब हुआ, तुमने इसके लिए एक निश्चित शारीरिक-भंगिमा अपनायी हुई है।
सबसे स्कूल शरीर है और सबसे सूक्ष्म होता है मन। लेकिन सूक्ष्म से आरंभ मत करो क्योंकि यह ज्यादा कठिन होगा। यह धुंधला है, तुम्हारी समझ की पकड़ में वह नहीं आ सकता। शरीर से आरंभ करो। इसीलिए पतंजलि शारीरिक मुद्रा से आरंभ करते है।
क्योंकि हम जीवन में बहुत अजाग्रत होते है : हो सकता है तुमने ध्यान न दिया हो कि जब कभी तुम्हारे मन में एक निश्चित भाव होता है तो उसके साथ तुम्हारी कोई निश्चित शारीरिक भंगिमा भी जुड़ जाती है। यदि तुम्हें क्रोध आया हुआ होता है, तो क्या तुम आराम से बैठ सकते हो? यह असंभव है। यदि तुम क्रोधित होते हो, तो तुम्हारे शरीर की स्थिति बदल जायेगी। यदि तुम एकाग्र होते हो, तो तुम्हारे शरीर की स्थिति बदल जायेगी। यदि तुम उनींदे होते हो, तो तुम्हारे शरीर की स्थिति बदल जायेगी।
यदि तुम पूर्णतया मौन होते हो, तो तुम बुद्ध की भांति बैठोगे, तुम बुद्ध की भांति चलोगे। और यदि तुम बुद्ध की भांति चलते हो, तो तुम अनुभव करोगे कि एक निश्चित मौन तुम्हारे हृदय के भीतर उदित हो रहा है। एक निश्चित मौन का सेतु निर्मित हो रहा है तुम्हारे बुद्ध की तरह चलने से। जरा बुद्ध की भांति पेडू के नीचे बैठ जाओ। बैठो; जरा शरीर को बैठने दो। अचानक तुम देखोगे कि तुम्हारा श्वसन बदल रहा है। वह ज्यादा विश्रामपूर्ण है, वह ज्यादा लयबद्ध है। जब श्वसन विश्रांत और लयबद्ध होता है, तब तुम अनुभव करोगे कि मन कम तनावपूर्ण होता है। कम विचार होते है, कम बादल, ज्यादा जगह,ज्यादा आकाश। तुम अनुभव करोगे, मौन बाहर-भीतर बह रहा है।
इसलिए मैं कहता हूं कि पतंजलि वैज्ञानिक हैं। यदि तुम अपने शरीर की भंगिमाएं बदलना चाहते हो, तो पतंजलि कहेंगे,अपनी भोजन-विषयक आदतें बदलो, क्योंकि हर भोजन-संबंधी आदत एक शारीरिक भंगिमा का निर्माण करती है। यदि तुम मांसाहारी हो, तो तुम बुद्ध की भांति नहीं बैठ सकते। यदि तम मांसाहारी हो, तो तम्हारी भंगिमाएं एक तरह की होंगी। यदि तम शाकाहारी हो, तो तुम्हारी भंगिमाएं अलग होंगी। क्योंकि शरीर तुम्हारे भोजन द्वारा बनता है। यह आकस्मिक नहीं है। जो कुछ भी तुम शरीर में डाल रहे हो, शरीर उसे प्रतिबिंबित करेगा।
इसलिए शाकाहारी होना पतंजलि के लिए कोई नैतिकतावादी पंथ नहीं है। यह एक वैज्ञानिक विधि है। जब तुम मांस खाते हो, तब तुम केवल भोजन ही नहीं कर रहे होते हो, तुम एक निश्चित जानवर को आने दे रहे हो-जिससे कि मांस पहुंचा-तुममें प्रवेश करने के लिए। एक खास प्राणी-शरीर का हिस्सा था मांस, वह मांस एक विशेष वृत्ति के ढांचे का हिस्सा था। केवल कुछ घंटे पहले वह मांस जानवर ही था, और वह मांस जानवर के सभी प्रभाव पहुंचाता है, जानवर की सभी आदतें। जब तुम मांस खा रहे होते हो, तुम्हारी बहुत-सी मुद्राएं इसके द्वारा प्रभावित हो जायेंगी।