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तीसरे दिन तक नान- इन ऊब गया था। वह बोला, ध्यान से देखने के लिए कुछ है नहीं तुम बरतन साफ किये जाते हो। साधारण काम करते रहते हो तो मुझे प्रस्थान करना चाहिए। सरायरक्षक हंस पड़ा, लेकिन कुछ बोला नहीं।
नान इन वापस आ गया। वह अपने गुरु के साथ बहुत नाराज हुआ और कहने लगा, 'क्यों? क्यों मुझे इतनी लंबी यात्रा पर भेज दिया? और यह बात थकाने वाली थी, जबकि वह आदमी तो केवल एक सराय-रक्षक था? और उसने मुझे कुछ नहीं सिखाया। वह तो बस बोला, ध्यान से देखो', और वहां ध्यान से देखने को कुछ था ही नहीं ।
गुरु ने कहा, 'लेकिन तो भी तुम वहां तीन-चार दिनों तक तो रहे । यदि वहां देखने को कुछ नहीं भी था, तुमने देखा तो होगा। तुम क्या कर रहे थे? वह बोला, 'मैं देखता था। रात को वह बरतन-हंडिया साफ करता। वह हर चीज अलग लगा कर रखता और सुबह वह फिर साफ कर रहा होता।'
गुरु ' ने कहा, 'यही, यही है वह शिक्षण यही है जिसके लिए तुम्हें भेजा गया था। वह रात को उन बरतनों को साफ कर चुका होता। इसका क्या अर्थ है? रात में, जबकि कुछ हुआ भी नहीं, वे फिर गंदे हो चुके होते थे, कोई धूल फिर जम चुकी होती। तो हो सकता है तुम शुद्ध होओ। अभी हो तुम। शायद तुम निर्दोष हो, लेकिन हर क्षण तुम्हें सफाई जारी रखनी पड़ती है। हो सकता है तुम कुछ नहीं कर रहे हो, लेकिन तब भी केवल समय के व्यतिक्रम द्वारा तुम अशुद्ध हो जाते हो, क्षण-प्रतिक्षण मात्र समय के बीतने द्वारा। यदि तुम कुछ कर भी नहीं रहे होते; केवल एक पेडू के नीचे बैठे हु होते हो, तुम मैले हो जाते हो और वह मैलापन इसलिए नहीं होता कि कि तुम कुछ बुरा कर रहे थे या कुछ गलत कर रहे थे। यह घटित होता है केवल समय के बीत जाने द्वारा। धूल इकट्ठी हो जाती है। इसलिए तुम्हें सफाई करते रहना होगा, और यही अंतिम संएकर्श है। इसकी आवश्यकता है क्योंकि मैं अनुभव करता हूं कि तुम गर्वीले हो गये हो कि तुम शुद्ध हो। और अब तुम्हें सफाई करने की सतत आवश्यकता के लिए प्रयत्न करने की चिंता नहीं रही है।"
क्षण-प्रतिक्षण व्यक्ति को मरना होता है और फिर पुनजावित होना होता है। केवल तभी तुम असत जान से मुक्त होते हो।
शब्दों के जोड़ मात्र से बनी एक धारणा जिसके पीछे कोई ठोस वास्तविकता नहीं होती वह विकल्प कलपना है।