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जब तक आदमी भीतर से परिवर्तित नहीं होता, तुम किसी निषेध को जबरदस्ती उस पर नहीं थोप सकते। ऐसा असंभव है, क्योंकि तब व्यक्ति पागल हो जायेगा। यह उसका तरीका है स्वस्थ और समझदार बने रहने का! कुछ घंटों के लिए वह नशे में रहता है, पत्थर बना हुआ, तब वह ठीक रहता है तब वहां कोई दुख नहीं है, तब वहां कोई संताप नहीं है। दुख आयेगा, संताप आयेगा, लेकिन कम से कम यह स्थगित हो जायेगा। अगले दिन सुबह दुख होगा, संताप होगा और उसे उसका सामना करना होगा। लेकिन वह शाम की आशा कर सकता है। एक बार फिर वह शराब पी लेगा और निश्चित हो जायेगा।
ये दो विकल्प हैं। यदि तुम ध्यानमग्न नहीं हो, तो देर-अबेर तुम्हें कोई नशा खोज लेना होगा और सूक्ष्म नशे हैं। शराब बहुत सूक्ष्म नहीं है, यह बहुत स्थूल है। लेकिन सूक्ष्म नशे हैं कामवासना तुम्हारे लिए एक नशा बन सकती है। काम-वासना द्वारा तुम अपना होश खो सकते हो। तुम किसी भी चीज को नशे की तरह इस्तेमाल कर सकते हो, लेकिन केवल ध्यान मदद कर सकता है। क्यों? क्योंकि ध्यान तुम्हें उस केंद्र पर केंद्रस्थ कर देता है जिसे पतंजलि कहते हैं- 'प्रमाण'।
हर धर्म में ध्यान पर इतना जोर क्यों है? ध्यान जरूर कोई आंतरिक चमत्कार करता रहा होगा। यही चमत्कार है-कि ध्यान सम्यक ज्ञान के प्रकाश को जलाने में मदद करता है। तब जहां कहीं तुम गति करो, जहां कहीं तुम्हारा होश पडे, तब जो कुछ जाना जाये सत्य होता है।
बुद्ध से हजारों-हजारों प्रश्न पूछे गये। एक दिन किसी ने उनसे कहा, 'हम आपके पास नये प्रश्न लेकर आते हैं। हमने आपके सामने प्रश्न रखा भी नहीं होता और आप उनका उत्तर देने लगते हैं। आप कभी इसके बारे में सोचते नहीं। ऐसा कैसे हो जाता है ? '
बुद्ध ने कहा, 'यह सोचने का प्रश्न नहीं है। तुम प्रश्न पूछते हो और मैं केवल उसे देखता हूं। जो कुछ सत्य है, उद्घाटित हो जाता है। इसके बारे में सोचने का, विचारमग्न होने का प्रश्न नहीं है। वह उत्तर संगत निष्कर्ष की तरह नहीं आता है यह केवल सही केंद्र पर ऊर्जा को फोकस करने का परिणाम है।'
बुद्ध किरणपुंज (टॉर्च) की तरह हैं जिस किसी दिशा में टॉर्थ घूमती है, वहां जो है उसे उद्घाटित कर देती है। प्रश्न क्या है, यह बात नहीं है। बुद्ध के पास प्रकाश है और जब कभी किसी प्रश्न पर प्रकाश आ पहुंचेगा, उत्तर प्रकट हो जायेगा। उस प्रकाश के कारण उत्तर आयेगा। यह स्वाभाविक घटना है, यह एक सहज बोध है।
जब कोई तुमसे कुछ पूछता है, तब तुम्हें उसके बारे में सोचना पड़ता है। तुम कैसे सोच सकते हो, यदि तुम जानते नहीं? और यदि तुम जानते हो, तो सोचने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि तुम नहीं जानते हो, तो तुम करोगे क्या? तुम अपनी स्मृति में खोजोगे, तुम्हें बहुत से सुराग