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प्रत्यक्ष नहीं है, यह सीधा नहीं है। तुम मुझे इंद्रियों के द्वारा सुन रहे हो, कानों के द्वारा। तुम मुझे आंखों के द्वारा देख रहे हो।
तुम्हारी आंखें तुम्हें गलत ढंग से खबर दे सकती हैं, तुम्हारे कान गलत ढंग से खबर दे सकते है। किसी चीज पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए किसी मध्यस्थ पर विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि तुम मध्यस्थ पर भरोसा नहीं कर सकते। यदि तुम्हारी आंखें बीमार हैं, वे अलग तरह से खबर देंगी; यदि तुम्हारी आंखें स्मृतियों से भरी हुई हैं, वे अलग खबर देंगी।
यदि तुम प्रेम में पड़ जाते हो, तब तुम अलग ढंग से देखते हो। यदि तुम प्रेम में नहीं पड़े हो, तुम उस तरह कभी नहीं देखते। एक साधारण सी दुनिया की सबसे अधिक सुंदर सी हो जाती है यदि तुम प्रेम की दृष्टि से देखो। जब तुम्हारी नजरें प्रेम से भरी होती है, वे तुम्हें कुछ अलग ही खबर देती हैं। और वही व्यक्ति कुरूप लग सकता है यदि तुम्हारी नजरें नफरत से भरी हुई हों। तुम्हारी आंखें विश्वसनीय नहीं हैं।
तुम कानों द्वारा सुनते हो, लेकिन कान उपकरण मात्र है। वे गलत ढंग से कार्य कर सकते है। वे कुछ ऐसी बात सुन सकते हैं जो कही नहीं गयी है। वे कुछ नहीं भी सुन सकते है जो कहा गया है। इंद्रियां भरोसे के योग्य हो नहीं सकती क्योंकि इंद्रियां केवल यांत्रिक साधन हैं।
फिर प्रत्यक्ष है क्या? प्रत्यक्ष-बोध है क्या? प्रत्यक्ष-बोध केवल तभी हो सकता है जब कोई भी मध्यस्थ नहीं होता है;इंद्रियां भी नहीं। पतंजलि कहते हैं कि तब वह है सम्यक ज्ञान प्रत्यक्ष। यह पहला बुनियादी स्रोत है सम्यक ज्ञान का-जब तुम कुछ जानते हो और तुम्हें किसी दूसरे पर निर्भर होने की जरूरत नहीं होती है।
केवल गहरे ध्यान में तुम इंद्रियों का अतिक्रमण कर पाते हो। तब प्रत्यक्ष-बोध संभव हो जाता है। जब बुद्ध अपने अंतरतम अस्तित्व को जानते हैं, वही अंतरतम सत्ता प्रत्यक्ष है। वही प्रत्यक्ष-बोध है। इंद्रियां भागीदार नहीं हैं। किसी ने किसी चीज की खबर नहीं दी; एजेंट जैसी कोई चीज वहां नहीं है। ताता और शात आमने-सामने हो जाते हैं। उनके बीच कुछ नहीं है। यह है प्रत्यक्षता। और केवल प्रत्यक्षता सत्य हो सकती है।
इसलिए पहला सम्यक जान केवल आंतरिक सत्ता का हो सकता है। तुम सारे संसार को जान सकते हो, लेकिन यदि तुमने अपने अस्तित्व के आंतरिक मर्म को नहीं जाना है, तब तुम्हारा सारा जान असंगत है। वास्तव में यह ज्ञान नहीं है। यह सत्य नहीं हो सकता क्योंकि पहला आधारभूत सम्यक ज्ञान तुममें घटित नहीं हुआ है। तुम्हारी सारी उन्नति मिथ्या है। तुमने बहुत-सी चीजें जान ली होंगी, लेकिन यदि तुमने स्वयं को नहीं जाना है, तुम्हारा सारा ज्ञान सूचनाओं पर टिका होता है; इंद्रियों द्वारा मिली खबर पर। लेकिन तुम किस प्रकार निश्चित कर सकते हो कि इंद्रियां ठीक खबर ही दे रही है?