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पड़ता है। और यदि तुम वहीं पर रहे बुद्ध पर श्रद्धा रखे बिना, तो भी ये दो साल बेकार हो ही जायेंगे। क्योंकि जब तुम श्रद्धा नहीं करते, तुम प्रयोग नहीं कर सकते। रूपांतरण का कार्य इतना सघन है कि यदि तुममें श्रद्धा हो तभी तुम बिलकुल पूरी तरह, पूर्णतया इसमें उतर सकते हो। यदि -तुममें श्रद्धा नहीं है, यदि तुम कुछ रोक कर रखते चले जाते हो, तब वह रोकना तुम्हें उसे अनुभव न करने देगा जो बुद्ध ने निर्देशित किया है।
खतरा तो है, लेकिन जीवन स्वयं ही एक खतरा है। ज्यादा ऊंचे जीवन के लिए, ज्यादा ऊंचे खतरे होंगे। तुम खतरनाक रास्ते पर चलते हो। लेकिन ध्यान रहे, जीवन में केवल एक भूल होती है और वह है, बिलकुल ही न चलना; केवल डर के मारे एक ही जगह बैठे रहना। डरना, कि यदि तुम बढ़ो तो कुछ गलत हो सकता है, तो बेहतर है प्रतीक्षा करना और बैठे रहना! केवल यही है भूल। तुम खतरे में नहीं पड़ोगे, लेकिन कोई विकास भी संभव न होगा।
पतंजलि कहते हैं कि ऐसी चीजें हैं जिन्हें तुम जानते नहीं और ऐसी चीजें हैं जिनका अनुमान तुम्हारा तर्क नहीं कर सकता। तुम्हें उन्हें श्रद्धा पर ही धारण करना पड़ता है। इस तीसरे स्रोत के कारण, वह गुरु, जो जानता है, एक अनिवार्यता बन जाता है। इसलिए तुम्हें खतरा उठना ही पड़ता है, और मैं इसे कहता हूं खतरा, क्योंकि कोई गारंटी नहीं, आश्वासन नहीं है। यह सारी बात केवल एक क्षति सिद्ध हो सकती है, लेकिन खतरा उठाना ज्यादा अच्छा है क्योंकि अगर यह बात क्षति भी सिद्ध हो जाती है, तो भी तुम बहुत कुछ सीख को होओगे। अब कोई दूसरा व्यक्ति तुम्हें उतनी आसानी से धोखा न दे पायेगा। कम से कम तुमने इतना तो सीख लिया है।
__ और यदि तुम श्रद्धा से चलते हो, समग्रता से चलते हो, छाया की तरह बुद्ध के पीछे हो लेते हो, चीजें तुममें घटित होने लग सकती हैं, क्योंकि वे इस व्यक्ति में घटित हो चुकी हैं। इन्हीं गौतम बदध में, जीसस में, महावीर में वे घटित हो चुकी हैं। और अब वे मार्ग जानते हैं, वे उस पर यात्रा कर चुके हैं। यदि तुम उनसे तर्क करो, तो तुम्हीं गंवाने वाले बनोंगे। वे गंवाने वाले नहीं हो सकते। वे तुम्हें बिलकुल एक ओर छोड़ देंगे।
इस सदी में ऐसा गुरजिएफ के साथ हुआ है। बहुत से लोग उसके प्रति आकर्षित होते, लेकिन वह ऐसी परिस्थितियां बना देता नये शिष्यों के लिए कि जब वे समग्रता से श्रद्धा नहीं करते, उन्हें तुरंत चले जाना पड़ता-जब तक कि वे बेतुकेपन में भी श्रद्धा नहीं रखते और वे बेतुकी बातें आयोजित की हई होती थीं। गुरजिएफ झूठ बोलता जाता। सुबह वह एक बात कहता, दोपहर को व और। और फिर तुम कुछ पूछ तो सकते नहीं थे। वह तुम्हारे तर्कपूर्ण मन को पूरी तरह तहस-नहस कर डालता।
सुबह वह कहता, 'इस गड्डे को खोदो। ऐसा करना अनिवार्य ही है। शाम तक यह पूरा हो जाना चाहिए।' सारा दिन तुम इसे खोदते रहते। तुम बहुत ज्यादा परिश्रम करते, तुम थक जाते, तुम