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जब यह बातचीत चल रही थी, तब दूसरा पागल जो एक खंभे के साथ जंजीर से बंधा हुआ था, हंसने लगा। उमर ने पूछा, 'तुम हंस क्यों रहे हो?' वह बोला, 'यह आदमी बिलकुल गलत है। मैंने इसे कभी नियुक्त नहीं किया था। मैं ऐसा नहीं होने दे सकता। मोहम्मद के बाद मैंने किसी पैगम्बर को नहीं भेजा।'
बुद्धपुरुषों के वचन बहुत विरोधात्मक और अतर्य है। हर आदमी जिसे बोध हो गया है, परएकर-विरोधी ढंग से,विरोधाभासी ढंग से बोलने के लिए विवश हो जाता है। क्योंकि सत्य ऐसा है कि इसे केवल विरोधाभासों दवारा अभिव्यक्त किया जा सकता है। उनके कथन स्पष्ट नहीं हैं, वे रहस्यपूर्ण है। तुम उससे कुछ भी निष्कर्ष निकाल सकते हो। तुम अनुमान करते हो,लेकिन तुम्ही अनुमान करते हो। तुम्हारा मन उसमें है। इसलिए अनुमान तुम्हारा ही अनुमान होगा।
पतंजलि कहते है, एक तीसरा स्रोत है। तुम नहीं जानते। यदि तुम सीधे जान सकते होते, तो कोई समस्या न थी। तब किसी दूसरे स्रोत की कोई जरूरत न होती। यदि तुम्हें प्रत्यक्ष-बोध है, तब अनुमान करने या बुद्धपुरुषों के वचनों की कोई जरूरत नहीं है। तब तुम स्वयं संबोधि पा गये हो। तब तुम दूसरे दोनों स्रोत छोड़ सकते हो। यदि ऐसा नहीं हुआ है तब अनुमान है; वह अनुमान होगा तुम्हारा। यदि तुम पागल हो, तब तुम्हारा अनुमान पागल होगा। तब तीसरा स्रोत आजमाने लायक है-बुद्धपुरुषों के वचन।
तुम उन्हें सिद्ध नहीं कर सकते, तुम उन्हें असिद्ध नहीं कर सकते। तुम उनमें केवल आस्था कर सकते हो और वह आस्था परिकल्पित होती है। यह र्बईहुत वैज्ञानिक है। विज्ञान में भी तुम बिना हाइपोथीसिस के, परिकल्पना के आगे नहीं बढ़ सकते। लेकिन परिकल्पना आस्था नहीं है। यह केवल एक कार्यात्मक संयोजन है। परिकल्पना तो एक दिशा-संकेत है, तुम्हें प्रयोग करना होगा। यदि प्रयोग ठीक प्रमाणित हो जाता है, तब हाइपोथीसिस सिद्धांत बन जाता है। यदि प्रयोग गलत सिद्ध हो जाता है, तब हाइपोथीसिस को अलग फेंक दिया जाता है। बुद्धपुरुषों के वचन श्रद्धा पर ग्रहण किये जाते हैं-किसी परिकल्पना की तरह। फिर उन्हें अपने जीवन में कार्यान्वत करते हो। यदि वे वास्तविक सिद्ध होते हैं, तब परिकल्पना श्रद्धा का जाती है। यदि वे मिथ्या प्रमाणित होते हैं, तब परिकल्पना का परित्याग कर देना पड़ता है।
तुम बुद्ध के पास जाते हो। वे कहेंगे, 'प्रतीक्षा करो, धैर्य रखो, ध्यान करो और दो वर्ष तक कोई प्रश्र न पूछो।' यह तुम्हें श्रद्धा से ही स्वीकार करना होता है। दूसरा कोई रास्ता नहीं है।
___ तुम सोच सकते हो, 'यह आदमी शायद मुझे धोखा ही दे रहा हो। फिर तो मेरी जिंदगी के दो साल बेकार हो जायेंगे। यदि दो साल के बाद यह प्रमाणित हो जाता है कि यह आदमी तो बस बहका देने वाला था, केवल एक छलिया या स्वयं को छलने वाला- भांति में है कि इसे संबोधि प्राप्त हो गयी है-तो मेरे दो साल बेकार हो जायेंगे।' लेकिन दूसरा कोई रास्ता नहीं है। तुम्हें खतरा उठाना ही