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वह इस किस्म का व्यक्ति है जो कि संदेह को ढूंढता है। और यदि मैं तर्कपूर्ण ढंग से उत्तर देता हूं तो मैं उसके तर्कपूर्ण मन के पोषण में, उसके मजबूत होने में मदद का रहा हूं। मैं उसे पोषित कर रहा हूं। इससे मदद न मिलेगी। उसे तार्किकता से बाहर लाना है।
इसलिए मैने उससे पूछा 'क्या तुम कभी प्रेम में पड़े हो?' वह बोला, 'क्यों? आप विषय बदल रहे हैं। मैंने कहा, 'मैं तुम्हारे विषय पर पुन: आऊंगा, लेकिन अचानक मेरे लिए बहुत अर्थपूर्ण हो गया है यह पूछना कि तुम्हें कभी प्रेम हुआ है? वह बोला, 'हां।' उसका चेहरा बदल गया था। मैंने उससे पूछा, 'क्या तुमने पहले प्रेम किया या प्रेम करने से पहले तुमने सारी घटना पर संदेह किया?'
तब वह घबड़ा गया। वह बेचैन हो उठा, वह बोला, 'नहीं, मैने इसके बारे में पहले कभी सोचा नहीं था। मैं तो बस प्रेम में पड़ गया, और केवल तभी मैंने प्रेम के बारे में जाना।' मैंने कहा, अब इसके विपरीत करो। पहले प्रेम के बारे में सोचो-क्या प्रेम संभव है, कि क्या प्रेम का अस्तित्व है, या कि क्या प्रेम का अस्तित्व हो सकता है! पहले इसे सिद्ध करने की कोशिश करो और इसे एक शर्त बना लो कि जब तक यह सिद्ध न हो जाये तुम किसी को प्रेम न करोगे।'
वह बोला,' आप क्या कह रहे हैं? आप मेरा जीवन नष्ट कर देंगे। यदि में इसे शर्त बना लेता हूं तब मैं प्रेम नहीं कर पाऊंगा।' मैंने उससे कहा, 'पर यह तो वही है जो तुम कर रहे हो। ध्यान प्रेम जैसा है। तुम्हें पहले इसका बोध पाना होता है। ईश्वर प्रेम जैसा है। इसीलिए जीसस कहते ही रहे कि ईश्वर प्रेम है। यह प्रेम की भांति है-पहले अनुभव करना पड़ता है।
एक तर्कशील मन बंद हो सकता है। और इतने तर्कपूर्ण ढंग से बंद हो जाता है, कि वह कभी अनुभव नहीं करेगा कि उसने स्वयं अपना द्वार बंद कर दिया है विकास की हर संभावना के लिए।
तो अनुमान का अर्थ है, इस ढंग से सोचना कि विकास में मदद मिले। तब यह सम्यक ज्ञान का स्रोत बन जाता है।
सम्यक शान का तीसरा स्रोत सबसे अधिक सुंदर है। किसी और जगह इसे सम्यक शान का स्रोत नहीं बनाया गया है। बुद्धपुरुषों के वचन- 'आगम'। इस तीसरे स्रोत के बारे में बड़ा वाद-विवाद रहा है। पतंजलि कहते है कि तुम प्रत्यक्ष रूप से जान सकते हो, और तब वह ठीक होता है। तुम ठीक अनुमान कर सकते हो और तब भी तुम ठीक मार्ग पर ही हो और तुम स्रोत तक पहुंच जाओगे।
लेकिन कुछ चीजें हैं जिनका तुम अनुमान भी नहीं कर सकते, और तुमने उन्हें जाना नहीं है। लेकिन तुम इस धरती पर पहले नहीं हो; तुम्हीं पहले खोजी नहीं हो। लाखों युगों से लाखों लोग खोज रहे है। और केवल इसी ग्रह पर नहीं, बल्कि और पहो पर भी। खोज शाश्वत है। और बहुत लोग पहुंच चुके हैं। वे लक्ष्य तक पहुंच चुके हैं। वे मंदिर में प्रवेश कर चुके हैं। उनके शब्द भी सम्यक ज्ञान के स्रोत है।