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यह आग्रह क्यों? कोई भी जो अनुपस्थित हो जाता है, जो अहंकारशून्य हो जाता है, वाहन की भांति कार्य करने लगता है-एक मार्ग की तरह-वह सब जो सत्य है उसका एक मार्ग; वह सब जो अस्तित्व में छिपा हुआ है और जो प्रवाहित हो सकता है उसका मार्ग। और जो कुछ मैं कहता हूं उसे तुम केवल तभी समझ पाओगे जब तुम अनुपस्थित हो जाओ, चाहे कुछ क्षणों के लिए ही।
यदि तुम वहां बहुत ज्यादा होते हो, यदि तुम्हारा अहंकार वहां हैं, तो जो कुछ मैं कह रहा हूं वह तुममें प्रवाहित नहीं हो सकता है। यह केवल एक बौदधिक संप्रेषण नहीं है। यह कुछ है जो अधिक गहरा है।
यदि तुम एक क्षण के लिए भी अहंकारशून्य हो जाते हो, तब घनिष्ठ संपर्क अनुभव होगा, तब कुछ अज्ञात तुममें प्रवेश कर चुका होगा और उस क्षण में तुम समझ पाओगे। और दूसरा कोई रास्ता नहीं है समझने का, जानने का।
प्रवचन 5 - योग-विज्ञान की शुचिता
दिनांक, 30 दिसम्बर; 1973, संध्या।
वुडलैण्ड्स
, बंबई।
योगसूत्र:
प्रत्यक्षानुमानागमा: प्रमाणानि।। 711
सम्यक ज्ञान (प्रमाण वृत्ति) के तीन सोत हैं प्रत्यक्ष बोध, अनुमान और बुद्धपुरुषों के वचन।
विपर्ययो मिथ्या ज्ञानमतदुपप्रतिष्ठम्।। 811
विपर्यय एक मिथ्या ज्ञान है, जो विषय से उस तरह मेल नहीं खाती जैसा वह है।