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आप वास्तव में ईश्वर के एकमात्र पुत्र है?' वे कहते, 'हां।' और यदि तुम उनसे इसका प्रमाण देने को कहो तो वे हंस देंगे। वे कह देंगे, प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं मैं जानता हूं। यही वस्तुस्थति है। यह स्वयं सिद्ध है।' हमें यह तर्कयुक्त नहीं लगता । यह आदमी विक्षिप्त जान पड़ता है। बिना किसी प्रमाण के कुछ दावा कर रहा है।
यदि यह प्रमाण, यह प्रमा का केंद्र, सम्यक ज्ञान का यह केंद्र क्रियाशील होने लगता है, तो तुम वैसे ही हो जाओगे। तुम निश्चयपूर्वक कहने के योग्य हो जाओगे, लेकिन तुम प्रमाण नहीं दे पाओगे। तुम प्रमाणित कैसे कर सकते हो? यदि तुम्हें प्रेम हो जाता है तो तुम इसका प्रमाण कैसे दे सकते हो कि तुम्हें प्रेम हो गया है? तुम ऐसा निश्चयपूर्वक कह ही सकते हो। यदि तुम्हारी टांग में दर्द है, तो तुम कैसे प्रमाणित कर सकते हो कि मुझे दर्द है? तुम भीतर कहीं इसे जानते हो। वह जानना काफी है।
रामकृष्ण से पूछा गया, क्या ईश्वर है? 'उन्होंने कहा, 'हां' उस व्यक्ति ने कहा, 'तो इसे प्रमाणित करें।' रामकृष्ण ने उत्तर दिया, 'इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। मैं जानता हूं। मेरे लिए कोई आवश्यकता नहीं। तुम्हारे लिए इसकी आवश्यकता है तो तुम खोजो इसे मेरे लिए कोई प्रमाणित नहीं कर सका और मैं इसे तुम्हारे लिए प्रमाणित नहीं कर सकता। मुझे खोजना पड़ा; और मैंने पा लिया है। ईश्वर है।'
यह सही केंद्र की क्रियाशीलता है। लेकिन रामकृष्ण या जीसस बेतुके लगते हैं। वे चीजों कुछ का दावा कर रहे हैं बगैर कोई प्रमाण दिये हुए लेकिन वे दावा नहीं कर रहे हैं। वे किसी चीज के लिए दावा नहीं कर रहे हैं। कुछ चीजें उनके सामने उद्घाटित हो गयी हैं क्योंकि उनके पास एक नये केंद्र की क्रियाशीलता है जो कि तुम्हारे पास नहीं है क्योंकि तुम्हारे पास यह है ही नहीं इसीलिए तुम्हें प्रमाणित करना पड़ता है।
ध्यान रहे, प्रमाण देना प्रमाणित करता है कि किसी चीज के लिए तुम्हारे पास कोई आंतरिक अनुभूति नहीं है, हर चीज को सिद्ध करना पड़ता है और लोग यही किये चले जा रहे हैं। मैं बहुतसे दंपतियों को जानता हूं जो यही करते हैं। पति प्रमाणित करने में लगा रहता है कि वह प्रेम करता है लेकिन इसे वह पत्नी को स्वीकार नहीं करा पाता। और पत्नी प्रमाणित किये जा रही है कि वह प्रेम करती है लेकिन वह पति को स्वीकार नहीं करा पाती। वे अनिश्चयी बने रहते हैं और यह द्वंद्व बना रहता है। हर एक अनुभव करता रहता है कि दूसरे ने अभी तक अपने प्रेम का प्रमाण नहीं दिया
है।
प्रेमी अपने प्रेम के प्रमाण जुटाने में लगे रहते हैं। वे स्थितियां बनाते हैं जिसमें दूसरे को अपने-अपने प्रेम का प्रमाण देना ही पड़े। और धीरे-धीरे दोनों प्रमाण देने की इस बेकार कोशिश से ऊब जाते हैं। और प्रमाणित कुछ नहीं किया जा सकता। तुम प्रेम का प्रमाण कैसे दे सकते हो? तुम