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जब तुम अपने नौकर से बातें करते हो, तो तुम पर अलग मुखौटा लगा होता है। और जब तुम अपने किसी अधिकारी से बातें करते हो, तो तुम्हारा मुखौटा बिलकुल ही अलग होता है। यह हो सकता है कि तुम्हारा नौकर तुम्हारी दायीं ओर खड़ा हुआ है और तुम्हारा मालिक तुम्हारी बायीं ओर। तब एक साथ तुम्हारे दो चेहरे होते हैं। बायीं ओर कोई एक चेहरा होता है और दायीं ओर तुम्हारा कोई अलग चेहरा होता है। क्योंकि तुम नौकर को वही चेहरा नहीं दिखी सकते। तुम्हें जरूरत नहीं। वहां तुम बॉस हो। तो तुम्हारे चेहरे का एक पहलू मालिक होगा।
लेकिन तुम वह चेहरा अपने बॉस को नहीं दिखा सकते क्योंकि तुम उसके नौकर हो, तो तुम्हारा दूसरा पहलू चाटुकारी-वृत्ति दर्शायेगा।
निरंतर यही होता जा रहा है। तुम ध्यान से नहीं देख रहे हो और इसीलिए तुम्हें इसका बोध नहीं है। यदि तुम ध्यान से देखो, तो तुम्हें बोध होगा कि तुम पागल हो। तुम्हारे पास कोई एक चेहरा नहीं है। मौलिक चेहरा खो चुका है। और ध्यान का अर्थ है कि मौलिक चेहरे को फिर से पा लेना।
झेन गुरु कहते हैं, 'जाओ और अपना मौलिक चेहरा ढूंढ निकालो। तुम्हारा वह चेहरा, जो पैदा होने से पहले था। वह चेहरा,जो तुम्हारा होगा जब तुम मर जाते हो।' जन्म और मृत्यु के बीच तुम्हारे पास झूठे चेहरे होते हैं। तुम लगातार धोखा दिये चले जाते हो। और केवल दूसरों को ही नहीं, जब तुम दर्पण के सामने खड़े होते हो तुम स्वयं को भी धोखा देते हो। तुम दर्पण में अपना वास्तविक चेहरा कभी नहीं देखते। तुम्हारे पास इतनी हिम्मत नहीं कि अपने ही सामने हो पाओ! दर्पण में दिखता चेहरा भी झूठा है। तुम इसे बनाते हो, तुम इसमें रस लेते हो, लेकिन यह एक रंगा हुआ मुखौटा है।
__ हम केवल दूसरों को धोखा नहीं दे रहे, हम अपने को भी धोखा दे रहे हैं। वस्तुत: यदि हमने स्वयं को ही धोखा नहीं दिया है तो दूसरों को धोखा नहीं दे सकते हैं। हमें अपने ही झूठ में विश्वास करना होता है; केवल तभी हम उसमें दूसरों का विश्वास बना सकते हैं। यदि तुम अपने झूठ में विश्वास नहीं करते, तो कोई दूसरा भी धोखे में आने वाला नहीं है।
और यह सारा उपद्रव, जिसे तुम अपना जीवन कहते हो, कहीं नहीं ले जाता है। यह एक पागल मामला है। तुम बहुत ज्यादा काम करते हो। तुम अत्यधिक परिश्रम करते हो, तुम चलते और दौड़ते हो। सारी जिंदगी तुम संघर्ष करते हो और कभी भी नहीं पहुंचते। तुम नहीं जानते तुम कहां से
आ रहे हो और तुम नहीं जानते कि तुम किधर बढ़ रहे हो, कहां जा रहे हो। यदि तुम सड़क पर किसी आदमी से मिलो और तुम उससे पूछो, 'तुम कहां से आ रहे हो श्रीमान?' और वह कहे, 'मैं नहीं जानता। और तब तुम उससे पूछो, 'कहां जा रहे हो?' और वह फिर कहता है, 'मैं नहीं जानता।' लेकिन तब भी वह कहता है, 'मुझे रोको मत, मैं जल्दी में हूं।' तो तुम उसके बारे में क्या सोचोगे? तुम सोचोगे कि वह पागल है।