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जान भी दवैत का हिस्सा है-अज्ञान और ज्ञान। लेकिन तथाकिथित संत कहे चले जाते हैं कि बुद्ध जाननेवाले हो गये हैं। यह है द्वैत से चिपकना। इसीलिए बुद्ध कभी उत्तर न देते थे। कई बार, लाखों बार उनसे यह पूछा गया, 'क्या घटित होता है जब एक व्यक्ति बुद्ध हो जाता है?' वे मौन ही रहते। वे कहते, 'हो जाओ और जानो।' क्या घटित होता है, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जो कुछ कहा जा सकता है, वह तम्हारी भाषा में कहा जायेगा। और तम्हारी भाषा बुनियादी तौर से द्वैतवादी है। अत: जो कुछ कहा जा सकता है, भ्रांतिपूर्ण होगा।
यदि यह कहा जाता है कि वे जानते हैं तो यह गलत होगा। यदि यह कहा जाता है कि वे अमर हो गये हैं तो यह गलत होगा। यदि यह कहा जाता है कि अब उन्हें परम आनंद उपलब्ध हो गया, तो यह असत्य होगा, क्योंकि सारे द्वैत मिट जाते है। दुख मिट जाता है, सुख मिट जाता है। अज्ञान मिट जाता है, ज्ञान मिट जाता है। अंधकार मिट जाता है, प्रकाश मिट जाता है। मृत्यु मिट जाती है, जीवन मिट जाता है। कुछ नहीं कहा जा सकता है। या केवल इतना ही कहा जा सकता है, कि जो कुछ तुम सोच सकते हो, वह वहां नहीं होगा। जो कुछ धारणा तुम बना सकते हो, वह वहां नहीं होगी। और एकमात्र तरीका है कि वही हो जाओ। केवल तभी तुम जानोगे।
तीसरा प्रश्न:
आपने कहा कि यदि हम राम की झलकियां देख पाते है या कल्पना करते हैं कि हम कृष्ण के साथ नृत्य कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि यह केवल कल्पना हो लेकिन अभी पिछली एक रात आपने कहा कि यदि हम ग्रहणशील हैं तो हम बिलकुल अभी बुद्ध या जीसस या कृष्ण से संपर्क बना सकते हैं। तो क्या यह मिलन भी कल्पना है, या ऐसी ध्यानमग्न अवस्थाएं हैं जिनमें क्राइस्ट या बुद्ध वास्तव में वहां होते हैं?
पहली बात-सौ में से, निन्यानबे घटनाएं तो कल्पना द्वारा होंगी। तुम कल्पना कर लेते हो
इसीलिए कृष्ण ईसाई को कभी दिखाई नहीं पड़ते और मोहम्मद कभी हिंदू को नहीं दिखाई पड़ते। हम मोहम्मद और जीसस को भूल सकते हैं, वे बहुत दूर है। जैन के सामने राम के दर्शन की झलकियां कभी प्रकट नहीं होतीं, वे नहीं दिख सकते। हिंदू के सामने महावीर कभी प्रकट नहीं होते। क्यों? क्योंकि महावीर की तुम्हारे पास कोई कल्पना नहीं