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यदि तुम जानते नहीं कि तुम कहां से आ रहे हो और तुम कहां जा रहे हो तो फिर जल्दी क्या है? लेकिन हर व्यक्ति की यही स्थिति है और हर व्यक्ति सड़क पर है। जीवन एक सड़क है और तुम हमेशा इसके बीच में होते हो। तुम नहीं जानते कि तुम कहां से आ रहे हो; तुम नहीं जानते कि तुम जा कहां रहे हो। तुम्हें स्रोत का कोई ज्ञान नहीं है; तुम्हें लक्ष्य का कोई बोध नहीं है। तो भी तुम हर कोशिश कर रहे हो, बहुत जल्दी में हो- 'कहीं नहीं पहुंचने के लिए!
किस प्रकार की स्वस्थचित्तता है यह? और इस सारे संघर्ष में से सुख की झलकियां तक तुम तक नहीं आतीं। झलकियां भी नहीं। तुम बस आशा करते हो कि किसी दिन, कहीं-कल, परसों या मृत्यु के उपरांत किसी परलोक में सुख तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है! यह एक तरकीब है स्थगित करने की, ताकि तुम अभी बहुत दुख अनुभव न करो।
तुम्हारे पास आनंद की झलकियां तक नहीं हैं। किस प्रकार की स्वस्थचित्तता है यह? तुम अनवरत दुख में हो, और वह दुख किसी दूसरे के द्वारा निर्मित किया हुआ नहीं है। तुम स्वयं अपना दुख निर्मित करते हो। किस प्रकार की स्वस्थचित्तता है यह? लगातार तुम अपना दुख निर्मित कर रहे हो। मैं इसे पागलपन कहता है।
स्वस्थचित्तता यह होगी कि तुम जागरूक हो जाओगे कि तुम केंद्रित नहीं हो। तो पहली जो बात करनी है वह यह है कि केंद्रीभूत हो जाना है। तुम्हें अपने भीतर एक केंद्र पाना है, जहां से तुम अपना जीवन आगे ले जा सको, जहां से तुम अपने जीवन को अनुशासित कर सको। अपने भीतर एक मालिक पाना है जिससे तुम निर्देश पा सको; जिससे तुम आगे बढ़ सको। पहली बात है, भीतर एकजुट और संगठित हो जाना और फिर दूसरी चीज होगी, अपने लिए दुख का निर्माण न करना। उस सबको गिरा दो जो दुख का निर्माण करता है-वे सारे उद्देश्य, इच्छाएं और आशाएं जो दुख का निर्माण करती हैं।
लेकिन तुम्हें होश नहीं है। तुम तो बस दुख को ही निर्मित किये जाते हो। लेकिन तुम समझते नहीं हो कि तुम्ही इसका निर्माण कर रहे हो। जो कुछ भी तुम करते हो, उससे भीतर तुम कोई बीज बो रहे होते हो। फिर पीछे वृक्ष आयेंगे। जो कुछ भी तुमने बोया है, उसी की फसल काटनी होगी। और जब भी तुम कोई फसल काटते हो, दुख वहां होता है, लेकिन तुम कभी विचार नहीं करते यह समझने के लिए कि बीज तुम्हारे द्वारा बोये गये थे। जब भी तुम्हें दुख होता है, तुम सोचते हो यह कहीं और से आ रहा है। तुम सोचते हो यह कोई दुर्घटना है या कि कुछ दुष्ट शक्तियां तुम्हारे विरुद्ध काम कर रहो हैं।
तुमने शैतान को निर्मित किया है। लेकिन शैतान केवल एक तर्कसंगत बहाना है। तुम शैतान हो। तुम्हीं अपना दुख बनाते हो। लेकिन जब भी तुम व्यथित होते, तुम इसका दोष शैतान पर ही मढ़