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सामान्य जीवन होगा वहां। कोई दुख नहीं, कोई प्रसन्नता नहीं, बस किसी तरह जीवन को खींचे जाना है! और यही है जो कुछ विवाह का अर्थ रहा है अतीत में।
अब अमरीका प्रयत्न कर रहा है, पश्चिम प्रयत्न कर रहा है प्रेम को पुनजीवित करने के लिए, पर उसमें से बहुत दुख चला आ रहा है। और देर-अबेर पश्चिमी देशों को फिर से बाल-विवाह का निर्णय लेना होगा। कुछ मनोवैज्ञानिक सुझाव दे ही चुके हैं कि बाल-विवाह को वापस लाना होगा क्योंकि प्रेम इतना अधिक दुख पैदा कर रहा है। लेकिन मैं फिर कहता हूं कि यह प्रेम नहीं है। प्रेम दुख की रचना नहीं कर सकता। यह तुम हो, तुम्हारे पागलपन का ढांचा है, जो दुख को रचता है। और केवल प्रेम में ही नहीं, हर कहीं। हर कहीं तुम अपना मन जरूर ले जाओगे।
उदाहरण के लिए, बहुत से लोग मेरे पास आते हैं, वे ध्यान करना आरंभ करते हैं। शुरू में आकस्मिक झलकियां कौंधती हैं, लेकिन केवल शुरू में! एक बार उन्होंने निश्चित अनुभवों को जान लिया, एक बार उन्हें निश्चित झलकियां मिल गयीं, फिर हर चीज रुक जाती है। तब वे रोते-चीखते मेरे पास आते हैं और पूछते हैं, 'क्या हो रहा है? कुछ हो रहा था, कुछ घटित हो रहा था,लेकिन अब हर चीज रुक गयी है। हम अपनी पूरी कोशिश लगा रहे हैं, लेकिन अब कुछ भी घटित नहीं होता है!'
मैं उनसे कहता हूं 'पहली बार वैसा हुआ क्योंकि तुम अपेक्षा नहीं कर रहे थे। अब तुम आशा कर रहे हो, जिससे कि सारी स्थिति बदल गयी है।' जब पहली बार निर्भार होने की अनुभूति तुम्हें हुई थी, किसी अज्ञात द्वारा पूरित होने की वह अनुभूति,अपने मुर्दा जीवन से दूर हो जाने की वह अनुभूति, भाव-विभोर क्षणों की वह अनुभूति, तब तुम उसकी अपेक्षा नहीं कर रहे थे। तुमने ऐसे क्षणों को कभी जाना न था। वे पहली बार तुममें उतर रहे थे। तुम बेखबर थे, अपेक्षाशून्य। ऐसी थी स्थिति।
अब तुम स्थिति बदल दे रहे हो। अब हर रोज तुम ध्यान करने बैठते, और किसी चीज की आशा करते रहते हो। अब तुम हो चालाक, होशियार, हिसाब लगाने वाले। जब पहली बार तुम्हें कोई झलक मिली थी, तब तुम निर्दोष थे एक बच्चे की भांति। तुम ध्यान के साथ खेल रहे थे, लेकिन वहा कोई अपेक्षा न थी। और तब घटना घट गयी थी। और वह फिर घटेगी, लेकिन तब तुम्हें फिर निर्दोष होना होगा।
___ अब तुम्हारा मन तुम्हारे लिए दुख ला रहा है। और यदि तुम यही आग्रह किये चले जाते हो कि बारंबार वही अनुभव मिलना चाहिए, तो तुम इसे हमेशा के लिए गंवा दोगे। यदि तुम उसे पूरी तरह भूल न जाओ, इसमें वर्षों लग सकते हैं। यदि तुम पूरी तरह से असंबंधित हो जाओ इससे, कि कहीं अतीत में ऐसी घटना हुई थी, तो फिर से वह संभावना तुम्हारे लिए प्रकट हो पायेगी।
इसे मैं कहता हूं पागलपन। तुम हर चीज नष्ट कर देते हो। जो कुछ भी तुम्हारे हाथ में आता है, तुम फौरन उसे नष्ट कर देते हो। और ध्यान रखना, जीवन बहुत से उपहार देता है जो बिन मांगे