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महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा इस इरादे से लिखी कि उससे लोगों को मदद मिलेगी। तब बहुत से पत्र आ गये उनके पास क्योंकि उस किताब में उन्होंने अपने यौन - जीवन का वर्णन किया था। वे बहुत ईमानदार व्यक्ति थे, सर्वाधिक ईमानदार व्यक्तियों में से एक। इसलिए उन्होंने सब कुछ लिख दिया था। जो कुछ भी अतीत में घटित हुआ था उस सबके बारे में उन्होंने लिख दिया कि वह किस तरह ज्यादा काम आसक्त थे, जिस दिन उनके पिता की मृत्यु हो रही थी वे उनके पास बैठ तक न सके। उस दिन भी उन्हें अपनी पली के बिस्तर में जाना पड़ा।
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डॉक्टर उनसे कह चुके थे कि यह अंतिम रात है। सुबह आपके पिताजी बच नहीं सकते। सुबह होने तक वे खत्म हो जायेंगे।' लेकिन रात कै कोई बारह या एक बजे उन्हें इच्छा महसूस होने लगी, यौन इच्छा। उनके पिताजी सो रहे थे, तो वे वहां से खिसक आये अपनी पत्नी के पास चले आये और काम-वासना में लिप्त हो गये। और पली गर्भवती थी। वह नौवां महीना था। पिता मर रहे थे, और बच्चा भी पैदा होते ही उसी क्षण मर गया। पिता तो उसी रात्रि चल बसे और सारी जिंदगी भर गांधी गहन पश्चाताप करते रहे कि वह अपने पिता के मरते समय उनके पास न थे। कामवासना इतनी हावी हो गयी थी।
गांधी ने सब कुछ लिखा था - और केवल दूसरों की मदद करने के लिए। वे ईमानदार थे। लेकिन उनके पास बहुत पत्र आने लगे और वे पत्र ऐसे थे कि वे हैरान रह गये। बहुत से लोगों ने उन्हें लिखा कि- आपकी आत्मकथा ऐसी है कि इसे पढ़ने भर से ही हम पहले से अधिक कामवासना से भर गये हैं। आपकी आत्मकथा पढ कर हम ज्यादा कामुक हो गये और भोगी हो गये हैं। वह कामोतेजक है।
यदि गलत केंद्र कार्य कर रहा होता है, तब कुछ नहीं किया जा सकता। जो कुछ भी तुम करो या पढ़ो, कैसे भी तुम व्यवहार करो, वह गलत ही होगा। तुम गलत की ओर ही बढ़ोगे। तुम्हारे पास एक केंद्र है जो तुम्हें गलत की ओर बढ़ने के लिए धक्का दे रहा है। तुम बुद्ध के पास भी चले जाओ, लेकिन तुम उनमें भी कुछ गलत देख लोगे! तत्काल ही! तुम बुद्ध को अनुभव भी नहीं कर सकते। तुम तुरंत कुछ गलत देख ही लोगे तुम्हारे पास केंद्रीकरण है गलत के लिए एक गहरी लालसा है कहीं भी हर कहीं गलत की खोज करने की।
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मन की इस वृत्ति को पतंजलि विपर्यय कहते हैं। विपर्यय का मतलब है विकृति । तुम हर चीज विकृत कर देते हो। तुम हर चीज के अर्थ इस तरह लगाते हो कि वह विकृति बन जाती है।
उमर खय्याम लिखता है, मैंने सुना है, कि ईश्वर दयालु है। यह सुंदर भाव है। मुसलमान दोहराये चले जा रहे हैं, 'खुदा रहमान (करुणावान ) है - रहम रहीम, रहम कर ।' वे इसे लगातार दोहराये जाते है। इसलिए उमर खय्याम कहता है, 'यदि वह वास्तव में दयालु है, यदि उसमें दया है, तो डरने की कोई जरूरत नहीं। मैं पाप किये जा सकता हूं। यदि वह दयालु है तब डर क्या? जो कुछ मैं चाहूं