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जिब्रान की एक कहानी है। एक रात मां और बेटी अचानक उठ गयीं। दोनों निद्राचारी थीं, स्लीपवाकर। फिर वे दोनों बाग में टहलने लगीं, नींद में ही। वे स्लीपवाकर थीं। वह बूढ़ी सी, वह मां बेटी से कह रही थी, 'तेरे कारण-तू कुतिया! तेरे कारण, मेरा यौवन नष्ट हो गया है। तूने मुझे नष्ट किया। अब हर आदमी जो घर में आता है, तुझे देखता है। मुझे कोई नहीं देखता।' मां एक गहरी ईर्ष्या व्यक्त कर रही थी जो हर मां को होती है, जब उसकी बेटी युवा और सुंदर हो जाती है। ऐसा हर मां के साथ होता है, लेकिन इसे भीतर छिपा कर रख लिया जाता है।
और बेटी कह रही थी, 'तू सड़ियल बुढ़िया! तेरी वजह से मैं जीवन का आनंद नहीं ले सकती। तू ही अड़चन है। हर कहीं तू ही अड़चन है, बाधा है। मैं प्रेम नहीं कर सकती। मजे नहीं कर सकती!'
और तभी अचानक शोर के कारण, वे दोनों जाग गयीं। की सी बोली, 'मेरी बच्ची, तुम यहां क्या कर रही हो? तुम्हें सर्दी लग सकती है। अंदर आ जाओ।' और बेटी बोली, 'लेकिन तुम यहां क्या कर रही हो? तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं थी और यह सर्दी की रात है। आओ मां, बिस्तर में लेटो।'
वह. पहली बात जो हो रही थी, अचेतन मन से चली आ रही थी। अब वे फिर अभिनय कर रही थीं। वे जाग गयी थी। अचेतन मन चला गया था और चेतन मन आया था। अब पाखंड़ी हो गयी थी। तुम्हारा चेतन मन पाखंडी है।
अपनी स्मृतियों के प्रति सच्चे तौर पर ईमानदार होने के लिए कठिन प्रयास में से सचमुच गुजरना पड़ता है। और तुम्हें सच्चा होना पड़ता है, चाहे कुछ हो। तुम्हें नग्न स्वप्न से वास्तविक होना पड़ता है। इसे तुम्हें जानना ही होगा कि तुम सचमुच क्या सोचते हो अपने पिता के बारे में, अपनी मां के बारे में, अपने भाई के बारे में, अपनी बहन के बारे में-जो तुम वास्तव में सोचते हो। और अतीत में जो तुम्हारे साथ घटित हुआ है, उसे तोड़ो-मरोड़ो मत, बदलो मत, सवारो मत। वह जैसा है उसे वैसा ही रहने दो। यदि ऐसा हो जाता है तो पतंजलि कहते हैं, यही बात मुक्ति बन जायेगी। तुम इसे छोड़ दोगे। सारी बात निरर्थक है,और तुम इसे फिर भविष्य में प्रक्षेपित करना नहीं चाहोगे।
और तब तुम एक पाखण्ड़ी नहीं रहोगे। तुम वास्तविक, सच्चे, निष्कपट रहोगे। तुम प्रामाणिक हो जाओगे। और जब तुम प्रामाणिक हो जाते हो, तुम चट्टान की भांति हो जाते हो। कोई चीज तुम्हें नहीं बदल सकती है, कोई चीज भ्रम पैदा नहीं कर सकती।
तुम तलवार जैसे हो गये हो। जो कुछ गलत है उसे तुम काट सकते हो। जो कुछ सही है उसे तुम गलत से अलग कर सकते हो। और तब मन की स्पष्टता उपलब्ध हो जाती है। वह स्पष्टता, स्वच्छता तुम्हें ध्यान की ओर ले जाती है। वह स्पष्टता विकास के लिए बुनियादी जमीन बन सकती है-विकसित होकर अतिक्रमण में उतरने के लिए।