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आज इतना ही।
प्रवचन 4 - मन के पार है बोध
दिनांक 28 दिसम्बर, 1973; संध्या।
वुडलैण्डस, बम्बई।
प्रश्न सार:
1-मनुष्य के लिए दो ही विकल्प हैं-पागलपन या ध्यान। तो क्या मनुष्य अब तक वहाँ पहुंच चुका
2-यदि सम्यक ज्ञान का केंद्र मन के भीतर है, तो उससे वास्तविक तथ्यो का स्पष्ट-दर्शन कैसे संभव है? और यह केंद्र सम्बोधि के पश्चात सक्रिय होता है या पहले?
3-ध्यान में घटित होने वाले दिव्य अनुभवों की प्रमाणिकता कैसे जांची जाए?
4- क्या जागरूकता भी मन की ही वृत्ति है?
5-विचारों के स्रोत मस्तिष्क की कोशिकाओं में अंकित संस्कार हैं। कृपया समझाएं कि साक्षी का प्रयोग इनसे मुक्ति कैसे लाता है।
6-ताओ, तंत्र, भक्ति और योग आदि विषयों पर आप इतनी आत्मीयता से कैसे बोल पाते हैं?